लिखने के लिए बहुत कुछ है
राजनीति, समाज मैं फैली
गंदगी का सच
आँखों में रड़कते धूल के कण का सच
नक़ाब के पीछे चेहरे का सच
मिट्टी का सच
सादा लिबास और रंग
का सच
मंदिर, मस्जिद ,चर्च और गुरुद्वारे
का सच
नाजायज़ शब्द का सच
रिश्तों में पनपते रिश्ते का सच
फ़कीर और भिखारी का सच
इट पत्थर और घर का सच
दोस्ती और दुश्मनी का सच
बातों और हरकतों का सच
आईना दिखाने वाले साहित्य का सच
पर ये सब , सब देख समझ रहें हैं
इसलिए मैं लिखती हूँ
प्यार का सच
और बोती हूँ बीज आत्माओं में
प्यार का
क्योंकि अगर दुनिया को कुछ बचा
सकता है तो वो है प्यार
राजनीति, समाज मैं फैली
गंदगी का सच
आँखों में रड़कते धूल के कण का सच
नक़ाब के पीछे चेहरे का सच
मिट्टी का सच
सादा लिबास और रंग
का सच
मंदिर, मस्जिद ,चर्च और गुरुद्वारे
का सच
नाजायज़ शब्द का सच
रिश्तों में पनपते रिश्ते का सच
फ़कीर और भिखारी का सच
इट पत्थर और घर का सच
दोस्ती और दुश्मनी का सच
बातों और हरकतों का सच
आईना दिखाने वाले साहित्य का सच
पर ये सब , सब देख समझ रहें हैं
इसलिए मैं लिखती हूँ
प्यार का सच
और बोती हूँ बीज आत्माओं में
प्यार का
क्योंकि अगर दुनिया को कुछ बचा
सकता है तो वो है प्यार
#रेवा
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज मंगलवार (05-02-2019) को "अढ़सठ बसन्त" (चर्चा अंक-3238)
ReplyDeleteपर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सच से कोई भी कितना ही बच ले लेकिन सच सबको आईना जरूर दिखाता है। बहुत सुंदर रचना। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteiwillrocknow.com
शुक्रिया
Deleteशुक्रिया
ReplyDelete....लाज़वाब प्रस्तुति...एक एक शब्द अंतस को छू जाते हैं !
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया
Delete