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Saturday, July 27, 2019

क्या कोई सुन सकता है




क्या कोई सुन सकता है
देख सकता है
खामोशी के अंदर का शोर

मन के अंदर छुपी बैठी वो
अलिखित कविता
वो मन के कोने में बैठा
एक छोटा सा बच्चा

महीने भर का हिसाब किताब
और उसमे छिपा बचत
उस बचत से जाने
क्या कुछ न ख़रीद लेने की
योजनाएं

घर के सारे दिन के काम काज
के बीच आसमान के टुकड़े के साथ
कुछ सुकून के पल

घर के लोगों के बीच तारतम्य बैठाती
औरत की खुद की टूटन
खुशी के पलों के लिए अपनी ही
टूटन जोड़ती वो स्त्री

सारे दिन मन के अंदर चलते
सवाल और जवाब
और उनमें खुद को दिए जाने
वाले दिलासे के
सब....ठीक हो जाएगा

मन की सोच के साथ
ढुलकते वो दो आँसू
क्या कोई सुन सकता है
देख सकता है

#रेवा




Tuesday, July 23, 2019

इश्क़





जब कविता शायरी से
मिलती है तो होता है इश्क़

जब साहिर अमृता से
मिलते हैं तो होता है इश्क़

जब भक्त भगवान से
मिलते हैं तो होता है इश्क़

जब राधा कृष्ण मिलते हैं
तो होता है इश्क़

जब तेरे शहर से होकर हवा
मुझे छू जाती है
तो होता है इश्क़

#रेवा
#इश्क़

Tuesday, July 2, 2019

बस्ती


आओ न
इन गूंगों की बस्ती में
तुम्हारा भी स्वागत है
यहां पर सिर्फ रंग चलता है
सफेद, हरा, लाल, भगवा
ब्लू, काला,पीला
यह फतओं और
फरमानों की बस्ती है
यहाँ चुप्पी का रिवाज़ है

लुटती है बीच सड़क इज़्ज़त
पर सभी चुप होकर
रंग मिला कर
बैठ जाते हैं शांत
कोई इंकलाब पैदा नहीं होता
नित नई लाशें
अपने रंग के कंधों पर
ढोई जाती हैं
आम आदमियों का
कोई रंग नहीं होता
इसलिए हर एक रंग की लाशों को
ढोते-ढोते इनके काँधे
बदरंग हो चुके हैं

ये सफेद रंग के लोग हैं
दंगों, और दहशतों के आका
इन्हीं के साये में
जीते हैं ये आम लोग
डर-डर कर और सहमे से
यह जिसका अन्न खाते हैं
उसे ही सूली पर चढ़ाते हैं
फिर भी चुप रहते हैं आम लोग

आओ न तुम भी
कोई नया रंग लेकर
इन गूँगों की बस्ती में
हम आम लोग
तुम्हारा भी स्वागत करते हैं
हथियार ज़रुर लाना
यहाँ डर का बोलबाला है।


रेवा