क्या कोई सुन सकता है
देख सकता है
खामोशी के अंदर का शोर
मन के अंदर छुपी बैठी वो
अलिखित कविता
वो मन के कोने में बैठा
एक छोटा सा बच्चा
महीने भर का हिसाब किताब
और उसमे छिपा बचत
उस बचत से जाने
क्या कुछ न ख़रीद लेने की
योजनाएं
घर के सारे दिन के काम काज
के बीच आसमान के टुकड़े के साथ
कुछ सुकून के पल
घर के लोगों के बीच तारतम्य बैठाती
औरत की खुद की टूटन
खुशी के पलों के लिए अपनी ही
टूटन जोड़ती वो स्त्री
सारे दिन मन के अंदर चलते
सवाल और जवाब
और उनमें खुद को दिए जाने
वाले दिलासे के
सब....ठीक हो जाएगा
मन की सोच के साथ
ढुलकते वो दो आँसू
क्या कोई सुन सकता है
देख सकता है
#रेवा
सब....ठीक हो जाएगा
मन की सोच के साथ
ढुलकते वो दो आँसू
क्या कोई सुन सकता है
देख सकता है
#रेवा
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (29-07-2019) को "दिल की महफ़िल" (चर्चा अंक- 3411) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार मयंक जी
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 30 जुलाई 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteशुक्रिया यशोदा बहन
Deleteबहुत गहरा आत्म विश्लेषण।
ReplyDeleteसुंदर रचना।
शुक्रिया
Deleteसुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआभार
Deleteबहुत लाजवाब...
ReplyDeleteवाह!!!
बहुत शुक्रिया
Deleteअंतरात्मा की व्यथा को प्रदर्शित करती रचना।
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया
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