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Tuesday, July 2, 2019

बस्ती


आओ न
इन गूंगों की बस्ती में
तुम्हारा भी स्वागत है
यहां पर सिर्फ रंग चलता है
सफेद, हरा, लाल, भगवा
ब्लू, काला,पीला
यह फतओं और
फरमानों की बस्ती है
यहाँ चुप्पी का रिवाज़ है

लुटती है बीच सड़क इज़्ज़त
पर सभी चुप होकर
रंग मिला कर
बैठ जाते हैं शांत
कोई इंकलाब पैदा नहीं होता
नित नई लाशें
अपने रंग के कंधों पर
ढोई जाती हैं
आम आदमियों का
कोई रंग नहीं होता
इसलिए हर एक रंग की लाशों को
ढोते-ढोते इनके काँधे
बदरंग हो चुके हैं

ये सफेद रंग के लोग हैं
दंगों, और दहशतों के आका
इन्हीं के साये में
जीते हैं ये आम लोग
डर-डर कर और सहमे से
यह जिसका अन्न खाते हैं
उसे ही सूली पर चढ़ाते हैं
फिर भी चुप रहते हैं आम लोग

आओ न तुम भी
कोई नया रंग लेकर
इन गूँगों की बस्ती में
हम आम लोग
तुम्हारा भी स्वागत करते हैं
हथियार ज़रुर लाना
यहाँ डर का बोलबाला है।


रेवा 

5 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ५ जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. सुंदर और सटीक प्रस्तुति

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  3. This comment has been removed by a blog administrator.

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