ये पौधे हैं न
कभी भेद भाव नहीं करते
पानी नाराज़गी से
डालो या प्यार से
ये अपनी पत्तियों के हरेपन
और फूलों की खिलखिलाहट से
मन खुश कर ही देते हैं
ये चाँद है जो हर रात
नज़र आता है आसमान पर
और कभी कभी
दिख जाता है खिड़की से भी
ये हमारे मिज़ाज़ को नज़रअंदाज़ कर देता है
दिन चाहे जैसा भी बिता हो
ये हर रोज़ अपनी चांदनी की ठंडक
भेज थपकी दे के कर सुला देता है
ये कागज़ और कलम हमेशा साथ देते हैं
जब मन दुखी हो तो दुख बयां कर देते हैं
जब खुश हो तो ये अक्षर
हँस कर खुशी भी बयान कर देते हैं
ये अपेक्षाएं नहीं रखते
जज तो बिल्कुल भी नहीं करते
न कोई वाओ फैक्टर ढूढते हैं
हम जैसे हैं हमें वैसे ही स्वीकार
कर हमेशा मान देते हुए
एक सच्चे दोस्त का फर्ज
बाखुबी निभाते हैं
आज इस कविता के जरिये मैं हमारे
इन सच्चे दोस्तों को धन्यवाद देती हूँ