बाबुल का आँगन
फिर एक बार
याद करा गया
वो बचपन ,
हवाओं मे
महकता दुलार
लाड़ और प्यार ,
करा गया
एहसास की
मैं वहीँ सबकी लाड़ली
छोटी अल्हड सी मिनी
जो फुदकती ,कूदती
अटखेलियां करती
नाचती थी आँगन आँगन ,
पर जिम्मेदारियों की
ओढ़नी ऐसी पड़ी ,
कि मिनी की पहचान ही
बदल दी ……
"बाबुल के आँगन की नन्ही कली
खिल कर फुल बनी
समय कि धुप उसपर ऐसी पड़ी
कि भूल गयी ,वो भी थी
कभी एक नन्ही कली "
पर जिम्मेदारियों की
ओढ़नी ऐसी पड़ी ,
कि मिनी की पहचान ही
बदल दी ……
"बाबुल के आँगन की नन्ही कली
खिल कर फुल बनी
समय कि धुप उसपर ऐसी पड़ी
कि भूल गयी ,वो भी थी
कभी एक नन्ही कली "
रेवा
कुछ नहीं भूलता कभी
ReplyDeleteबस समय की धूल पड़ी होती है
तुम्हें खुश देख बहुत अच्छा लगता है
God ब्लेस्स you
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन सेर और सवा सेर - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteShukriya
Deletemann ko chhu lene wali kavita.....sach bachpan bahut yaad aata hai..nahi bhul pate wo sunahare din.
ReplyDeleteरचना और चित्र दोनो सुंदर।
ReplyDeleteसमय की चाल्होती है ये ... बीत जाता है जल्दी ही बस यादें दे जाता है ...
ReplyDeleteअच्छी रचना ...
Shukriya mayank ji
ReplyDeleteWell said!
ReplyDeleteसब कुछ बदल जाता है, केवल यादें रह जाती हैं...सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteसच लिख दिया आपने वह भी खूबसूरती से।
ReplyDeleteaap sabka bahut bahut shukriya
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत अहसास.... स्नेह में भीगी सुन्दर रचना
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