मैं हर रोज़ नए - नए
मनसूबे बनाती हूँ
तुमसे बात न करने के ,
पर कामयाब हो ही नहीं पाती
कभी दिल कमज़ोर पड़ जाता है
कभी दर्द ज्यादा बढ़ जाता है ,
कभी मौसम मना लेता है
कभी तेरा प्यार याद आ जाता है
कभी तुम्हारी कही गयी बातें ,
कभी वो समझ जिससे हमेशा
मेरी बात मुझसे पहले ही
पहुंच जाती है तुम तक............
शायद
तेरी आवाज़
मेरी आदत
और आदत
ज़िन्दगी बन गयी है अब।
रेवा
wah ji wah ....aap bulaye aur ham naa aaye ....!
ReplyDeletebahut sundar
wah wah kya baat hai..very romantic voice....
ReplyDeleteवाह जी वाह ..... एक ही बात सबके मन मे आ रही ना
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर..
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी रचना.....
'और आदत जिंदगी बन गई अब " बहुत सुन्दर !
ReplyDeletenew post ग्रीष्म ऋतू !
bahut bahut shukriya apka
ReplyDeleteमधुर लेखन , लगभग रचनायें बेहतरीन , धन्यवाद !
ReplyDeleteI.A.S.I.H - ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
सुन्दर भाव...बहुत खूब...
ReplyDeleteवाह..बहुत भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteमेरी आदत,और आदत ज़िन्दगी गयी है अब।
ReplyDeleteवाह ,सुन्दर भावपूर्ण रचना साभार
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
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