औरत
नाम है ऐसे जीव का
जो हमेशा पिसती रहती है
दो पाटों मे
कभी ससुराल तो
कभी मायके के नाम पर
कभी पति तो कभी
बच्चों के नाम पर .....
उसके मन की बात कभी
कोई नहीं सुनता
क्योंकि वो खुद की
कहाँ सुनती है ??
एक घर जन्म का
एक घर कर्म का
पर न वो जन्म
वालों की हो पाती है
न कर्म वालों की
ता उम्र दोनों के लिए
परायी बन
गुज़ार देती है
तमाम रिश्तों के बीच
परायी स्त्रियों को
सलाम मेरी इस
लेखनी द्वारा
न कर्म वालों की
ता उम्र दोनों के लिए
परायी बन
गुज़ार देती है
तमाम रिश्तों के बीच
परायी स्त्रियों को
सलाम मेरी इस
लेखनी द्वारा
और अंत में कहना चाहूँगी
"बेटी हूँ बहू हूँ
बीवी हूँ माँ हूँ
पर सबसे पहले
हाड़ मांस की इन्सान हूँ
रेवा
"बेटी हूँ बहू हूँ
बीवी हूँ माँ हूँ
पर सबसे पहले
हाड़ मांस की इन्सान हूँ
रेवा
सच कभी तो लगता है वह अपने लिए बनी ही नहीं है ..
ReplyDeleteshukriya Yashoda behen
ReplyDeleteshukriya kavita ji
ReplyDeleteबहुत सही, बहुत सुन्दर
ReplyDeleteऊपर वाले ने सोच-समझकर ही इतनी सहनशक्ति वाला जो बनाया है औरत को कि वह हाल में जी लेती है ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
आपको जन्मदिन की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteआज पांच लिंकों का आनंद अपना 200 अंकों का सफर पूरा कर चुका है.. इस विशेष प्रस्तुति पर अपनी एक दृष्टि अवश्य डाले....
आपने लिखा...
और हमने पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 02/02/2016 को...
पांच लिंकों का आनंद पर लिंक की जा रही है...
आप भी आयीेगा...
shukriya kuldeep ji
DeleteBhut badhiuya line likha hai apne
ReplyDeleteसटीक अभिव्यक्ति ... नारी इस श्रृष्टि की कल्पना है ... संरचना है ... श्रेष्ठ है ...
ReplyDeleteshukriya digamber ji
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