कल रात मैंने एक ख्वाब देखा ,
ख्वाब मे तुम्हे देखा.....समुन्दर के किनारे गीली रेत पर
तुम्हारे कांधे पर सर रखे ,
अपने आप को पूरी तरह भूल गयी.......
बरसात मे एक छतरी के निचे ,
तुम्हारे साथ हाँथो मे डाले हाँथ ,
पता नहीं कितनी दूर कितनी देर ,
बस चलती गयी ......
सर्दी की कुनकुनी धुप मे ,
घंटो तुम्हारे साथ बैठे ,
दुनिया भर की बातें करते ,
पता नहीं कब शाम हो गयी .........
और भी ऐसी पता नहीं ,
कितनी अनगिनत बातें ,
अनगिनत मुलाकातें ,
और ज़िन्दगी यूँही चलती गयी
बस यूँही चलती गयी ......काश ये ख़्वाब सच हो जाये ,
काश .....
रेवा
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