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Thursday, April 23, 2009

एक ख़्वाब

कल रात मैंने एक ख्वाब देखा ,
ख्वाब मे तुम्हे देखा.....
समुन्दर के  किनारे गीली रेत पर
तुम्हारे कांधे पर सर रखे ,
अपने आप को पूरी तरह भूल गयी.......

बरसात मे एक छतरी के निचे ,
तुम्हारे साथ हाँथो मे डाले हाँथ ,
पता नहीं कितनी दूर कितनी देर ,
बस चलती गयी ......

सर्दी की कुनकुनी धुप मे ,
घंटो तुम्हारे साथ बैठे ,
दुनिया भर की बातें करते ,
पता नहीं कब शाम हो गयी .........

और भी ऐसी पता नहीं ,
कितनी अनगिनत बातें ,
अनगिनत मुलाकातें ,
और ज़िन्दगी यूँही चलती गयी 
बस यूँही  चलती गयी  ......

काश ये ख़्वाब सच हो जाये ,
काश .....

रेवा

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