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Wednesday, November 11, 2009

गृहणी की कथा (वो क्या करे )

गृहणी.....एक लड़की वो जो अपना घर छोड़ कर अपने दोस्तों को छोड़ कर ,एक पुरे अलग परिवेश मे अनजान लोगो के बिच आती है अपने जीवन साथी का हाँथ थामे ,अनेको सपने आँखों मे लिए , वो एक एक कर के सब रिश्तो को समझती , उस घर के सारे रीती रिवाज़ अपनाने की कोशिश करती है धीरे धीरे वो सरे घर का , घर के बढो का ,अपने बच्चो का पति का सबका ध्यान रखने लगती है , सबकी पसंद ना पसंद , दुःख दर्द का बड़े प्यार से ख्याल रखती है

लेकिन यहीं से शुरू होती है उसकी व्यथा , इन सबको उसका फ़र्ज़ समझा जाता है ये तो उसे करना ही है , पर दुसरो के फ़र्ज़ का क्या ??? ये कोई नही सोचता उसकी खुशियाँ ,उसके पसंद ना पसंद ,उसकी इच्छाएँ कोई मायिने नही रखती उसकी भी कोई सोच है, उसका भी अस्तित्व है, पर उसे यह बोला जाता है की "तुम्हे कुछ नही समझ आता तुम अपना काम करो " बस वो सारा दिन चक्की की तरह सुबह से शाम पिसती रहती है, जो घर छोड़ आई है उसे वो अपना बोल नही सकती , और इस घर मे भी उसे सम्मान ना मिले तो वो क्या करे ???


ऐसे मे उसे सबसे ज्यादा जरूरत होती है अपने जीवन साथी की, अगर वो एक अच्छे दोस्त की तरह उसके कंधे से कन्धा मिला कर हर मुसीबत मे साथ दे ,चाहे वो घर के लोगो से हो या फ़िर कुछ भी, तो शायद जीना आसन हो जाता है पर ऐसा बहुत काम लोगो के साथ है , और जिनके साथ नही वो क्या करे ?????? या तो इसे ही अपना नसीब मान कर जीती रहे ............या अन्दर ही अन्दर घुटे, उसे क्या चाहियी ....... उसे चाहिए तो सिर्फ़ बहुत सारा प्यार और सम्मान ,पर यही उसे नही मिल पाता तो वो क्या क्या करे ????????

जानती हुं की दुनिया बहुत आगे निकल गई है नारी अब घर बहार दोनों कार्यो को बखूभी निभाने लगी है ,अपने फैसले ख़ुद लेती है ,और लोग उसका साथ देते है बहुत से पति भी अपनी पत्नियों का पुरा ध्यान रखते है ,उन्हें अपनी दोस्त समझते है , पर फ़िर भी यह प्रश्न चिन्ह बहुत सारी गृहणियों के जीवन मे है

रेवा

6 comments:

  1. kuch galtiyan ho tho chama kare........kayi jagho par purn viram nahi hai....uskay liye chama kare

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  2. "Ek sawaal tum karo" is blog pe shamaji ne isee bareme likha hai...'arthee to uthee' is sheershak tahat...mai aapko link bhejtee hun...bada achha laga aalekh padhke...bhukt bhogee hun, samajh sakti hun...

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  3. woh pehle beti
    phir behen ban ke
    rishton ki
    pavitr dor hoti hai...

    janam ke ghar se
    jab apne pati ke ghar jaati hai
    tab woh sirf
    ek samarpan hoti hai....

    hontho pe lori
    aanchal mein mamta ko chhupaye
    jo dudh peelaye
    woh ladki nahi "maa" hoti hai.."maa" hoti hai.

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  4. Actually every person want to live the life on its own ways and on its own conditions..

    if two guys living together with own conditions then it is hard to say that love is exist there...

    if somehow they adjust their conditions for each other then love is still there..

    if one is adjusting and ignoring the behave of other ..then love is true...

    if both stop using questioning mind then love is exist there and very pious..

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  5. आपकी भावना बहुत अच्छी है. इस पर नारी को स्वयं सोचना होगा. वैसे दिन प्रतिदिन इसमें बदलाव देखा जा रहा है. बदलेगा समय. मेरी सोच तो यही है कि "धीरज धरम विवेक अरु नारी. आपात काल परखिये चारी" में नारी ही "धीरज" "धरम" और "विवेक" से घर में कठिन से कठिन परिस्थितियों का भी सामना कर लेती हैं. इस बात को नकारा नहीं जा सकता.

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