बहुत इंतज़ार के बाद तुम आये
एक विरहन के तपते ह्रदय में
ठंडी हवा का झोंका बनकर .............
यथासंभव मुझे मेरे स्थान से डिगा कर
परम सुख की अनुभूति बनकर ..........
मैं भी ऐसे रमी तुझमे के भूल ही गयी
की एक दिन तू फिर मुझे उसी
स्थान पर छोड़ कर चला जाएगा .........
फिर उसी इंतज़ार ...उसी तड़प...उसी विरह वेदना
में जलने के लिए ,
उसी आंसुओं के समंदर मैं गोता लगाने
के लिए छोड़ जाएगा ...........
क्या यह इंतज़ार कभी ख़त्म न होगा
क्या मैं सदा ही तड़पती रहूंगी
क्या यही मेरी ज़िन्दगी है ???
रेवा
i am sorry kshamaji computer mai kuch prob ki vajah say puri rachna delete ho gayi thi aur isliye apka comment which is too precious bhi delete ho gaya......very sorry
ReplyDeleteअति सुन्दर...
ReplyDeleteक्या यही मेरी ज़िन्दगी है ???
ReplyDeleteकाश यह इंतजार खत्म हो
यही नहीं है जिन्दगी
bahut khoob...sabr rakhiye aapko jo chahiye wo jarur milega...shubhkamnayein..;)
ReplyDeleteअंतिम पंक्तियाँ दिल को छू गयीं.... बहुत सुंदर कविता....
ReplyDeleteक्या यही मेरी ज़िन्दगी है ???
ReplyDeletewaah kya baat hai...
bahut hi sundar warnan....
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mere blog mein is baar...
जाने क्यूँ उदास है मन....
jaroora aayein
regards
http://i555.blogspot.com/
Kamaal hai Rewa ji, aapne aur maine dono ne virah par likha hai!
ReplyDeleteBas aap virah se dukhi hain, aur main use celebrate kar raha hoon!
Rachna achhi ban padi hai.....
Kisi ke chale jane ka dard bakhoobi ukera hai