आज कलम उठाया
तो मन हुआ की
जितना प्यार दिल
में भरा है
उतार दू सारा
इस कागज़ पर ,
ताकि फिर न
प्यार पाने की
इच्छा हो
न खोने का गम ,
न दुरी का एहसास हो
न सांसो को
सांसो की आस हो ,
न याद कर
आंखें नम हो
न दिल मे
खालीपन हो ,
न बाँहों मे
सिमटने की चाह हो
न धडकनों को
धडकनों से राह हो ,
बस इन कागज़
के पन्नो पर
बिखरे मेरे
आखरी चाह हो
आखरी आह हो....
रेवा
तो मन हुआ की
जितना प्यार दिल
में भरा है
उतार दू सारा
इस कागज़ पर ,
ताकि फिर न
प्यार पाने की
इच्छा हो
न खोने का गम ,
न दुरी का एहसास हो
न सांसो को
सांसो की आस हो ,
न याद कर
आंखें नम हो
न दिल मे
खालीपन हो ,
न बाँहों मे
सिमटने की चाह हो
न धडकनों को
धडकनों से राह हो ,
बस इन कागज़
के पन्नो पर
बिखरे मेरे
आखरी चाह हो
आखरी आह हो....
रेवा
Kya gazab likhti hain aap!Pyar sach,kitna tadpata hai!
ReplyDeleteह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना
ReplyDeleteवसन्त की आप को हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteरेवा जी
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता लिखी है आपने
ये प्यार की प्यास कब बुझती है
वसन्त की आप को हार्दिक शुभकामनायें !
kagaz par utarte ye shabd ehsaas hote hain hamare antarman ke....
ReplyDeletebahut khub..
क्या बात है !!
ReplyDeleteबेहतरीन !!!
ap sabka bahut bahut shukriya
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