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Tuesday, February 8, 2011

इन कागज़ के पन्नो पर

आज कलम उठाया
तो मन हुआ की
जितना प्यार दिल
में भरा है
उतार दू सारा
इस कागज़ पर ,
ताकि फिर न
प्यार पाने की
इच्छा हो 
न खोने का गम ,
न दुरी का एहसास हो
न सांसो को
सांसो की आस हो ,
न याद कर
आंखें नम हो
न दिल मे
खालीपन हो ,
न बाँहों मे
सिमटने की चाह हो
न धडकनों को
धडकनों से राह हो ,
बस इन कागज़
के पन्नो पर
बिखरे मेरे
आखरी चाह हो
आखरी आह  हो....


रेवा

7 comments:

  1. Kya gazab likhti hain aap!Pyar sach,kitna tadpata hai!

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  2. ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना

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  3. वसन्त की आप को हार्दिक शुभकामनायें !

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  4. रेवा जी
    बहुत अच्छी कविता लिखी है आपने
    ये प्यार की प्यास कब बुझती है

    वसन्त की आप को हार्दिक शुभकामनायें !

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  5. kagaz par utarte ye shabd ehsaas hote hain hamare antarman ke....
    bahut khub..

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  6. क्या बात है !!

    बेहतरीन !!!

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