कभी जब ढूंढने
निकलती हूँ खुद को ,
को तो पाती हूँ
अपने अन्दर
अपने अन्दर
एक मौन एक
एकाकीपन ,
एक लड़की जो
एक लड़की जो
रोज़ खुद से
लडती रहती है ,
कभी इस एकाकीपन को
दूर करने के लिए
जुड़ जाती है
लोगों से,
नए रिश्ते बनाती
और उन से आशाएं
करने लगती है,
हर बार टूटता
है ये भ्रम ,
पर नहीं सुधरती /
कभी कुछ पाने की
आशा मे,
कुछ कर गुजरने
की चाहत मे ,
तड़पती रहती ,
पर अपने परिवार
की जरूरतों के
आगे कुछ जरूरी
नहीं लगता ,
या यु हो सकता
है की ये बहाना
हो ,कुछ न
कर पाने का ,
शायद
खुद से जुड़ना ,
खुद को जवाब
देना , खुद से
प्यार करना ,
नहीं सीख
पाई ..................
रेवा
रेवा