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Thursday, February 23, 2012

वो बचपन का गुजरा जमाना

कभी कभी 
बहुत याद आता है मुझे 
वो बचपन का गुजरा जमाना  ,
वो भैया से  झगडे 
और दीदी की पुचकार ,
छोटी छोटी बातों मे
रूठना और छुप जाना ,
रो रो कर अपनी हर बात मनवाना ,
पापा का लाड बरसाना
मम्मी का झूठ बोल कर 
खाना खिलाना ,
गुप्ता जी के दूकान से 
चोरी चोरी जा कर 
१० पैसे के गटागट खाना ,
दोस्तों के साथ 
कबड्डी और कित कित खेलना ,
माँ को मना कर दोस्त के घर 
पढने जाना ,
अब तो बस आँखों मे बसे हैं     
वो दिन ,वो पलछिन ,
काश ! कोई लौटा दे
वो बचपन का गुजरा जमाना /



रेवा 


10 comments:

  1. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

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  2. अब तो बस आँखों मे बसे हैं
    वो दिन ,वो पलछिन ,
    काश ! कोई लौटा दे
    वो बचपन का गुजरा जमाना /
    Bas ab yahee sab yaaden rah jatee hain!Jo rula jaatee hain!

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  3. दिल को छू गयी...
    अनमोल रचना !!

    वो दिन ,वो पलछिन ,
    काश ! कोई लौटा दे....

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  4. सही कहा आपने बचपन के दिनों को याद करके मन करता है एक बार फिर उन अलमास दिनों को जी लें।

    सादर

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  5. aap sabka bahut bahut shukriya.......

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  6. वाह ...बचपन याद करवा दिया

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  7. बहुत ही सुन्दर कविता बचपन याद दिला दिया अपने
    मेरी कविता के कुछ अंश

    लोटा दो वो बचपन की यादे , वो गलियों के नुकढ़ की बाते
    लोटा दो मेरे जीते कंचे जो बाकि है |
    वो वो सपनो की राजकुमारी लोटा दो वो दादा जी की कहानी
    वो ऊंट की सवारी , वो १० पेसे की पेन्सिल ,
    वो चुपके गुटके कहने की आदत , लोटा दो वो बचपन की बाते मेरी बचपन की यादे , वो मासूम चेहरा , वो मासूमियत की लाली
    क्यों नहीं लोटा ते वो मेरे पापा की पपी
    ना ज़मीन, ना सितारे, ना चाँद, ना रात चाहिए,
    माँ जो बचपन में करती वो प्यार चाहिए
    लोटा दो वो मेरा बचपन की बाते वो वो आँखों के आंसू
    काश कोई लोटा दे वो बचपन का गुजरा जमाना
    दिनेश पारीक

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  8. thanx bhai....wah kya lines hai...too gud

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