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Thursday, March 22, 2012

वैसे रह पाए ?

चलो ,एक बार फिर 
वहीँ चलते हैं ,
समुन्दर के किनारे 
गीली रेत पर ,
जहाँ घंटो बैठ कर 
हम दोनों ने नाम लिखा था ,
आती जाती 
उन लहरों के साथ 
कितनी कसमें खायी थी ,
ठंडी हवाओं के साथ 
कितने महकते पल बिताये थे ,
वो रेत अभी भी 
वैसे ही गीली है ,
वो लहरें ,वो हवाएँ 
सब वैसे ही हैं 
पर क्या हम 
वैसे रह पाए ??????

रेवा 

13 comments:

  1. वो रेत अभी भी
    वैसे ही गीली है ,
    वो लहरें ,वो हवाएँ
    सब वैसे ही हैं
    पर क्या हम
    वैसे रह पाए ??????
    बहुत ही प्यारी और भावो को संजोये रचना.....

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  2. Aah! Samay aur ham,dono badal jate hain!

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  3. sushma 'आहुति' has left a new comment on your post "वैसे रह पाए ?":

    वो रेत अभी भी
    वैसे ही गीली है ,
    वो लहरें ,वो हवाएँ
    सब वैसे ही हैं
    पर क्या हम
    वैसे रह पाए ??????
    बहुत ही प्यारी और भावो को संजोये रचना.....

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  4. दिल की भावनाओं को स्पर्श करती बेहद सुन्दर प्रस्तुति !!

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  5. बहुत मार्मिक! नवसंवत्सर २०६९ की हार्दिक शुभकामनाएँ|

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  6. बहुत प्यारी कविता

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  7. saral shabdon mein ek achhi bhaav-purn kavita..

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  8. बहुत सुन्दर रेवा जी...

    कुछ नहीं बदलता...बस हम ही बदल जाते हैं...

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