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Tuesday, June 12, 2012

मैं तृप्त हो गयी

क्या बताऊ तुम्हे की
तुम्हारे प्यार ने
क्या - क्या दिया है मुझे ,

तुम्हारा प्यार पा कर
जैसे तृप्त हो गयी हूँ मैं ,

आंसू  अब अपना रास्ता
भूल गए हैं ,

होंठ अब बस हमेशा
मुस्कुराना सीख गए हैं ,

मन में उठती सवालो
की लहरें अब शांत हो गयी हैं ,

धडकनों को अपना पता
मिल गया है ,

जैसे मेरे एहसासों को  पनाह
मिल गयी है ,

होते होंगे प्यार मे पागल लोग
पर मैं तो तृप्त हो गयी  /



रेवा


17 comments:

  1. प्यार तृप्ति ही है ... पागलपन नहीं

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  2. anootha ahsaas......
    bahut sunder shabd diye hai apni bhawnaao ko.....

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  3. इसी को कहते है एक अहसास एक सम्पूर्ण प्रेम अथा सागर में से एक प्रेम की बूंद निकलना और उस को दुसरे के लिए समर्पित कर देना वहा वहा
    बहुत ही सुन्दर मैं तो भाव विभोर हो गया आपकी इस रचना से २० बार पढना भी आशा लगा रहा है की कम ही है
    मेरे पास सब नहीं है उन शब्दों को वयक्त करने को
    बहुत सुन्दर
    दिनेश पारीक

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  4. waah, ham to prem ras me doob gaye, bahut sunder rachna ........bahut sunder ahsaas........

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  5. खूबसूरत हैं ये एहसास

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  6. वाह ... बहुत खूब ।

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  7. वाह ... प्रेम में तृप्ति का भाव ... निर्वाण की स्थिति में पहुँचने से कम नहीं ...

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  8. बहुत तृप्त से भाव ... सुंदर प्रस्तुति

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  9. ऐसी सुन्दर रचना पढकर..
    मैं भी तृप्त हो गया !!

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  10. really....reva....jaise sukhi nADI MEIN BAR AA GAYI HI...YA...JAISE ANKHOON MEIN KHUSHI KE ANSOON.........AAPKE ALFAZO KA ANDAZE BAYAN KABILE TARIF HAI.....

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  11. Pawanji...bahut bahut shukriya apka

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  12. ख्याल बहुत सुन्दर है और निभाया भी है आपने उस हेतु बधाई, सादर वन्दे.
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