ये कैसे लोग हैं ?
माँ के कोख़ मे पल रही
नन्ही कलियों को
मार देते हैं ,
इससे भी मन नहीं भरता
तो पैदा होते ही उन्हें
कभी अनचाही
कभी नाजायज़
क़रार देते हुए
मंदिर ,नालों, कूड़ेदानों
और न जाने कहाँ -कहाँ
फेक कर चले जातें हैं ,
जैसे बच्ची न हो
कूड़ा हो ......
ऐसे करने वालों को
ये प्रश्न क्यों नहीं सालता की
'क्या वो इंसान कहलाने लायक हैं '?
कई बार ये काम वो उस
माँ से करवाते हैं
जिसने अपनी कोख मे
९ महीने रखा उस बच्ची को ,
जाने कितनी बार उसे
सहलाया , पुचकारा
उसकी धड़कने महसूस की ,
उसके हरकत करने पर
मन ही मन मुस्कायी ,
अपनी खून से सींचा
उस नन्ही परी को ,
उसके नन्हे नन्हे हाँथ पैरों की
कल्पना की,
उसके साथ जाने कितने
अनगिनत संजोये ,
दिन रात ,हर घड़ी हर पल
उसकी रक्षा की ,
उसे अपनी गोद मे
उठाने के इंतज़ार मे
हर कष्ट हँस कर सहा ............
उसी माँ से उसकी बच्ची
छीन लेना उफ्फ्फ !
प्रश्न सिर्फ ये नहीं की
क्या वो इंसान कहलाने के लायक हैं ?
ये भी है की....... हम सब इसे रोकने के लिए क्या कर रहे हैं ?
रेवा