तुम्हारी जादुई बातों ने
फिर याद दिला दिया
वो सिन्दूरी झील के
किनारे की शाम ,
फिर एहसास हो आया
उस मिलन का
जिसमे सिर्फ
मैं और तुम
हाँथो मे कॉफ़ी लिए
बस अपलक एक दूसरे
को निहार रहे थे ,
उस दिन पता चला
कुछ अधूरा था मुझमे
जो तुमसे मिल कर
पूरा हो गया ,
ज़िंदगी मे ये कुछ देर की
मुलाकात ऐसा महसूस करा
सकती है
ये कभी सोचा न था ,
अब कभी तुमसे दुबारा
मिलना होगा की नहीं
ये तो खुदा जाने
पर उस मिलन की
खुशबु आज भी
मेरे रोम रोम में बसी है..........
रेवा
Lajawaab dil me utar gaye ahsaas ..... Behad umdaa..!!
ReplyDeleteदिल से लिखी गयी है ..और दिल तक पहुची भी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर नर्म नाज़ुक मन को भिगोती सी रचना !
ReplyDeleteYadon k saye me ....utre komal ahsaas
ReplyDeleteShukriya sada ji
ReplyDeleteदगा का स्वाद कैसा होता है? एक बार मैं घूमा किया अपने गति के साथ। देखा कि किनारों पर किस तरह कांपते हैं कछुए और नदी की गहराइयों से कराहता है चांद...
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