मैं ज़िन्दगी के पन्नों को
जितना भी पढ़ने की
कोशीश करती हूँ
वो उतना ही
उलझती जाती है ….
कोशीश करती हूँ
वो उतना ही
उलझती जाती है ….
मैंने प्यार करने की
जिससे भी कोशिश की
वो उतना ही मुझसे दूर
चला जाता है ……
मैंने दिलो जान से
जिससे भी दोस्ती निभायी
वो उतना ही अजनबी
बन जाता है …....
पर मैं ये नहीं बोलती की
ज़िन्दगी अब तू मुझ पर रहम कर,
सितम जितने चाहे उतने कर
मैं भी फौलादी इरादे रखती हूँ
हर सितम के साथ
और मजबूती से
सामना करने को तत्पर होती हूँ.
"ऐ ज़िन्दगी खेल ले मुझसे तू
जी भर आँख मिचोली,
मैं भी डटी रहूंगी भर कर
बुलंद हौसलों की टोली "
रेवा
जिससे भी कोशिश की
वो उतना ही मुझसे दूर
चला जाता है ……
मैंने दिलो जान से
जिससे भी दोस्ती निभायी
वो उतना ही अजनबी
बन जाता है …....
पर मैं ये नहीं बोलती की
ज़िन्दगी अब तू मुझ पर रहम कर,
सितम जितने चाहे उतने कर
मैं भी फौलादी इरादे रखती हूँ
हर सितम के साथ
और मजबूती से
सामना करने को तत्पर होती हूँ.
"ऐ ज़िन्दगी खेल ले मुझसे तू
जी भर आँख मिचोली,
मैं भी डटी रहूंगी भर कर
बुलंद हौसलों की टोली "
रेवा
जिंदगी के पन्नो को जितना
ReplyDeleteपढ़ने की कोशिश करती हूँ वो उतना ही उलझ जाती है
हर शब्द अपनी दास्ताँ बयां कर रहा है आगे कुछ कहने की गुंजाईश ही कहाँ है बधाई स्वीकारें
Shukriya sanjay
DeleteShukriya ravikarji
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteतुझे मना लूँ प्यार से !
कुछ ऐसी है जिंदगी...बहुत सुंदर और भावमय अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteshukriya himkar ji
Deleteलाज़वाब ज़ज्बा...बहुत भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteDatane wala hi vijayi hota hai.... Aur jindagi to deti hai tajurbe ... Bas ye jo diye jaaye aap has ke liye jaayein ... Lajawaab abhivyakti !!
ReplyDeleteshukriya lekhika ji
Deleteक्योंकि जिंदगी भी एक हादसा है, और हादसे में कुछ भी सम्भव है ,बहरहाल रेवाजी सुन्दर कृति हेतु आभार
ReplyDeleteshukriya apka
Deleteरेवा जी..... बेहद गहरी अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteshukriya kamlesh ji kafi dino baad apka yahan aana hua..
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