बचपन से लेकर आज तक
बहुत कड़वाहट मिली है ,
बेगानों से और
अपनों से भी……
आदत सी हो गयी है जैसे
तिरस्कार और कड़वाहट
सहने की ,
पर मज़े की बात तो
ये है की
अब इस कड़वाहट मे भी
मधुरता का स्वाद आता है,
ज़िन्दगी अब कड़वी नहीं
बल्कि शहद सी मीठी
लगती है,
और ये कमाल
इसलिये हुआ है
क्योकी
"मुझे प्यार हो गया खुद से" !
रेवा