ज़ुबान पर नाम तो तेरा अब भी आता है
पर जाने क्यूँ ये लब खामोश रहते हैं ,
प्यार तो तुझ पर अब भी आता है
पर जाने क्यूँ ये दिल बेवफाई की चादर ओढ़ लेता है ,
ख्वाबों में तेरा अक्स अब भी नज़र आता है
पर जाने क्यूँ ये नज़रों का धोखा लगता है ,
आदत सी हो गयी है यूँ जज़्बातों को कुचलने की
जाने क्यूँ ये प्यार अब बेमानी सा लगता है।
रेवा
जब प्रेम बदल जाता है तो बेमानी सा लगने लगता है ...
ReplyDeleteshukriya Digamber ji hamesha aap ka blog par aana padhna aur comment karna accha lagta hai ....margdarshan karte rahein....shukriya
ReplyDeleteकोमल भावनाओं से युक्त हृदयस्पर्शी प्रस्तुति ! बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteshukriya Sadhana didi
Deleteसुंदर जज़्बात, बेहतरीन प्रस्तुति :)
ReplyDeleteshukriya sandeep ji
Deleteप्यार बेईमानी सा लगता है.....लाजवाब प्रस्तुति।
ReplyDeleteshukriya kamlesh ji
Deleteदिल के गहराई से निकले शब्द बहुत प्रभावी है !
ReplyDeleteवही होता है जो निर्णायक चाहता है !
दिल की गहराइयों से लिखे शानदार शब्द हैं आपके रेवा जी
ReplyDeleteक्या खूबसूरत अंदाज़ है. मन को उभरानेवाली एक दिलकश रचना :))
ReplyDeleteबहुत शानदार प्रस्तुति थी
ReplyDeleteanupam bhav sanyojan ....
ReplyDeleteशुक्रिया राजीव जी
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