नारी
माँ बहन बेटी पत्नी दोस्त
और भी कई रूप
पर दिखता क्यों बस
हाड़ मास का देह स्वरुप ,
प्यार वात्सल्य से भरी
इस मूरत मे
क्यों दीखता है
काम ,वासना का ही रूप ,
बोलने को कर लेते हैं सब
बड़ी बड़ी बातें
और बनते हैं परम पुरुष,
पर मन के अंदर
वहीँ लालसा ,वो ही
लपलपाती लार टपकती
इच्छायें लिए घूमते हैं ,
इंतज़ार मे की कब मौका
मिले और भूख शांत हो ..........
"अगर ये दुनिया ऐसी है
तो हमे दुगनी शक्ति से
भर दो माँ
ताकी आने वाली बेटियों को
हम सब मिल कर
भय मुक्त समाज दे सके !!
रेवा
भेड़ियों की कोई अलग जात नहीं है ....उनसे डरो तो डराते है डट कर सामना करने की हिम्मत जुटा ली तो भाग खड़े होते देर नहीं लगती ......
ReplyDeleteचिंतनशील रचना ....
Sahi kaha kavita ji.......
ReplyDeleteअत्यंत संवेदनशील रचना ! वाकई सवाल तो उठते हैं मन में क्या यह दुनिया रहने लायक रह गयी है ?
ReplyDeleteजी साधना दीदी ....
Deleteनिश्चित ही इन्सनियत शक के घेरे में है
ReplyDeleteसही कहा शिव राज जी
Deleteनिश्चित ही ईन्सानियत शक के घेरे में है ।
ReplyDeleteतल्ख़ ... संवेदनशील रचना ... इसी दुनिया में आना होगा नारी को और इसे सुधारना होगा ... रहने लायक बनाना होगा सब को मिल कर ...
ReplyDeleteबात सही कही आपने...काश सब ये बात समझ लें....तो हम अपनी बच्चियों को अच्छी दुनिया दे पायेंगे
Deleteहृदयस्पर्शी भावपूर्ण प्रस्तुति.बहुत शानदार
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को शनिवार, ३० मई, २०१५ की बुलेटिन - "सोशल मीडिया आशिक़" में स्थान दिया गया है। कृपया बुलेटिन पर पधार कर अपनी टिप्पणी प्रदान करें। सादर....आभार और धन्यवाद।
ReplyDeletetushar ji shukriya .....shifting kay karan yahan aa nahi payi
DeleteMithilesh ji swagat hai blog par..... shukriya
ReplyDeleteNice post...
ReplyDeleteNice post...
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