मेरे मन की गठरी से
निकल कर खो गयें है
सारे शब्द ,
ख्याल सिमट गए हैं
दिल की चार दिवारी के बीच ,
एहसास कहीं गुम हो गयें हैं
समय भी दब गया हैं
काम के बोझ तले ,
अब कैसे करूँ तुकबन्दी ?
कैसे भरूं
अपनी रचनाओं मे प्राण
जब मेरी कलम पड़ी है
निष्प्राण………………
रेवा
Wah man ki baat keh di aapne
ReplyDeleteshukriya shiv raj ji
ReplyDeleteसमय पर कलम बोल उठती है
ReplyDeleteमनोभावों की सुन्दर प्रस्तुति
shukriya kavita ji
Deleteसुन्दर भावों का संचार
ReplyDeleteस्वजनित प्रश्न हैं, उत्तर भी स्वरचित ही हो शायद
ReplyDeleteशुभकामनाओं सहित
Shukriya harish ji
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (13-06-2015) को "जुबां फिसलती है तो बहुत अनर्थ करा देती है" { चर्चा अंक-2005 } पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
Abhar mayank ji
Deleteकभी -कभी खाली होता है मन तो यूं ही लगता है।
ReplyDeleteshukriya rashmi ji
Deleteसुंदर !
ReplyDeleteShukriya
ReplyDeleteबहुत खूब. आपकी कलम में तो बहुत जान भरी है
ReplyDeleteshukriya onkar ji sushil ji
ReplyDelete