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Wednesday, December 21, 2016

शीत





जाने क्यूँ इन शीत के
शुरुआती दिनों मे

मन अजीब सा हो जाता है


दिल का एक ख़ाली कोना
सर उठाने लगता है
उसे जितना समझाने की
कोशिश करती हूँ
वो ऊँन के गोले सा
उतना ही उलझता जाता है.....


एक अनभुझ पहेली

सा

हर रोज़ साथ

चलता रहता है

क्या तुम सुलझा

सकते हो ?


भर सकते हो मेरे दिल का

वो खाली कोना ?

करा सकते हो मेरी

शीत की सुबह को

गुनगुनी धूप सा एहसास ???


रेवा

12 comments:

  1. ठण्ड तो है
    सूर्य की किरणें भी
    चन्द्रमा सी शीतलता
    प्रदान करती है
    श्रेष्ठ रचना
    सादर

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22-12-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2564 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  3. मनोभावो को बड़े सुन्दरता से पगा है...मज़ा आ गया।

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  4. बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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  5. कई बार कुछ रादें भी गुनगुना कर जाती हैं ...
    ख्यालों की उड़ान लाजवाब ...

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  6. अच्छी शब्द रचना........ आभार
    नव वर्ष की शुभकामनाएं
    http://savanxxx.blogspot.in

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