आईने के सामने खड़े हो
आज खुद से
बात करने की कोशिश करी .......
जब गौर से देखा तो
समझ ही नहीं आया की
ये मैं हूँ !!
न पहले सा रंग रूप
न निर्छल हंसी
न वो अल्हड़पन
न जिद्द
न वो बचकानी बातें
न कुछ कर गुजरने की चाह
बस एक उदासी ओढ़े
यथावत अपने काम हो अंजाम
देती एक स्त्री ,
ये मैं तो हरगिज़ नहीं
फिर ये है कौन !!
ये है ४० पार की वो औरत
जो उम्र के इस पड़ाव पर
अपना वज़ूद तलाश रही है।
रेवा
मनोभावों को क्या रूप दिया है...वाह!
ReplyDeletekamlesh ji abhar
Deleteshukriya yashoda behen
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (06-12-2016) को "देश बदल रहा है..." (चर्चा अंक-2548) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
abhar mayank ji
Deletesach kahaa.
ReplyDeletesharda ji mere blog par apka swagat hai....shukriya
Deleteखैर उस आईनें को आप की उदासी देखकर हंसी जरूर आ गयी होगी ...
ReplyDeletehahahah...sach kaha prabhat bhai....shukriya
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