मुझे रहने दो मेरे घर मे अकेले
ये बखूबी जनता है मेरे मिज़ाज
जब भी ख्याल बिखरते हैं
बटोर कर सहेज लेता है उन्हें
सजा देता है करीने से अलमारियों मे
ताकि झाड़ू बुहार न ले जाये उन्हें
मुझे रहने दो मेरे घर मे अकेले ,
भरी बरसात मे और गर्म दुपहरिया मे
माँ की तरह देखभाल करता है मेरी
धूप और तूफान के हर कतरे
को रखता है दूर मुझसे
ताकि महफूज़ रह सकूँ
मैं उसके साये मे .............
मुझे रहने दो मेरे घर मे अकेले।
रेवा
बहुत सुन्दर ..
ReplyDeleteshukriya Kavita ji
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बृहस्पतिवार (12-01-2017) को "अफ़साने और भी हैं" (चर्चा अंक-2579) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
abhar Mayank ji
Deleteshukriya Yashoda behen
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteshukriya kamlesh ji
Deleteshukriya savan ji
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति .
ReplyDeleteshukriya pratibha ji
Deleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteshukriya rajeev ji
Deleteबढ़िया
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