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Wednesday, January 11, 2017

मुझे रहने दो






मुझे रहने दो मेरे घर मे अकेले
ये बखूबी जनता है मेरे मिज़ाज
जब भी ख्याल बिखरते हैं
बटोर कर सहेज लेता है उन्हें
सजा देता है करीने से अलमारियों मे
ताकि झाड़ू बुहार न ले जाये उन्हें
मुझे रहने दो मेरे घर मे अकेले ,

भरी बरसात मे और गर्म दुपहरिया मे
माँ की तरह देखभाल करता है मेरी
धूप और तूफान के हर कतरे
को रखता है दूर मुझसे
ताकि महफूज़ रह सकूँ
मैं उसके साये मे .............
मुझे रहने दो मेरे घर मे अकेले।

रेवा


14 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बृहस्पतिवार (12-01-2017) को "अफ़साने और भी हैं" (चर्चा अंक-2579) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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