लिखा जब भी
मैंने खुद को ........
मेहसूस किया
इस कागज़ ने
तब मुझको ,
लिखे जब
दर्द भरे अल्फ़ाज़
इसके दिल पर ,
तकलीफ़ इसे भी हुई
शब्दों से मिल कर ,
जब हुई इसकी
मुलाकात
मेरे आँसुओं के साथ
स्याही
ने भी बिखर कर
किया एहसास ,
पर अब बस
बहुत कर लिया
हमने दर्द का सफ़र
आज से ये वादा है
एक दूजे के साथ की
अब हम मिलकर लिखेंगे
सिर्फ प्यार भरी किताब !!!!
मैंने खुद को ........
मेहसूस किया
इस कागज़ ने
तब मुझको ,
लिखे जब
दर्द भरे अल्फ़ाज़
इसके दिल पर ,
तकलीफ़ इसे भी हुई
शब्दों से मिल कर ,
जब हुई इसकी
मुलाकात
मेरे आँसुओं के साथ
स्याही
ने भी बिखर कर
किया एहसास ,
पर अब बस
बहुत कर लिया
हमने दर्द का सफ़र
आज से ये वादा है
एक दूजे के साथ की
अब हम मिलकर लिखेंगे
सिर्फ प्यार भरी किताब !!!!
रेवा
Waah
ReplyDeleteji shukriya
Deleteshukriya Dilbag ji
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteshukriya onkar ji
Deleteप्रेम को हम जब तक नहीं लिख सकते, जब तक हम प्रेम को मेहसूस नहीं कर सकते। विरह, वेदना, आह, आँसू प्रेम के ही रूप हैं। जहाँ प्रेम होता हैं वहाँ विरह, वेदना, आह, आँसू भी होते हैं। जीवम का सबसे ज़रूरी अंग हैं प्रेम। प्रेम हीन होने पर तो संसार रंग हीन हो जाएगाँ।
ReplyDeleteप्रेम का अहसास लिए एक सुन्दर कविता........ बधाई।
http://savanxxx.blogspot.in
aaha kya baat kahi apne....bahut bahut shukriya
ReplyDeleteप्रेम में जीवन का हर पहलू छिपा नजर आता है .....और जब प्रेम द्विपक्षीय हो जाता है तो किताब क्या.... ग्रन्थ क्या ....वाह सब कुछ हासिल किया जा सकता है जो प्रेम की परिभाषा में आ जाते है...
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