अपने बारे में
आज सोचने
बैठी तो....
कुछ समझ ही नहीं आया
मुझे क्या पसंद
क्या नापसंद
कुछ याद ही नहीं ???
एक वो ज़माना था
जब माँ खिचड़ी
या मेरी नापसंद की
कोई भी चीज़
बनाती थी तो मैं
हल्ला कर के सारा
घर सर पर उठा लेती थी
और एक आज
जो बन जाता है
खा लेती हूँ ....
न किसी चीज़ की
ज़िद न कोई
शिकायत .......
अब खीर बता कर
न कोई
दूध चावल
खिलाने वाला ....
न गली पर
कोई आइसक्रीम वाला
आवाज़ देने वाला
न ही मदारी
का खेल कहीं
नज़र आता....
न कोई
दूध चावल
खिलाने वाला ....
न गली पर
कोई आइसक्रीम वाला
आवाज़ देने वाला
न ही मदारी
का खेल कहीं
नज़र आता....
न गोद में सर रख कर
अब कोई
पुचकारने वाला...
न बीमारी में
रात भर सिरहाने
बैठ सर सहला
हनुमान चालीस पढ़ने वाला
माँ फिर से मुझे
मेरा बचपन लौटा दो न
बस ये एक अंतिम ज़िद
पूरी कर दो माँ !!
अब कोई
पुचकारने वाला...
न बीमारी में
रात भर सिरहाने
बैठ सर सहला
हनुमान चालीस पढ़ने वाला
माँ फिर से मुझे
मेरा बचपन लौटा दो न
बस ये एक अंतिम ज़िद
पूरी कर दो माँ !!
रेवा
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 09 मार्च 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteshukriya Digvijay ji
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 09-03-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2603 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
shukriya Dilbag ji
Deleteआपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति ब्लॉग बुलेटिन - अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
ReplyDeleteshukriya harshvardhan ji
Deleteसुंदर कविता
ReplyDeleteshukriya archna ji
Deleteसुंदर कविता
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteshukriya paratibha ji
Deleteसुन्दर।
ReplyDeleteshukriya sushil ji
Deleteसुन्दर,....सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDeleteमेरा बचपन लौटा दो न.....
भावुक रचना।
http://eknayisochblog.blogspot.in
mere blog par apka swagat hai ....shukriya
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (12-03-2017) को
ReplyDelete"आओजम कर खेलें होली" (चर्चा अंक-2604)
पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
abhar mayank ji
Deleteबहुत संवेदनशील रचना
ReplyDeleteshukriya onkar ji
Deleteसहीं कहाँ बिता हुआ समय लोट आता तो कितना अच्छा होता। वो बचपन फ़िर से जी लेते एक बार पर ऐसा कभी नहीं होगा।
ReplyDeletesach tarun ji .....shukriya
Deletedil ko chhu lene wala lekh, har pathak khud ko isse jod sakta hai.
ReplyDeletemere blog par apka swagat hai rubi ji ....shukriya
Deleteइस अंतिम ज़िद को पूरा करने के लिए हर गुजरा लम्हा दुआ कर रहा है 👌👌 भावमय अभिव्यक्ति
ReplyDeleteshukriya sada ji
Deleteमाँ और बचपन का गहरा सम्बन्ध।
ReplyDelete