मैं इश्क हूँ
मैं अमृता हूँ
मैं अमृता हूँ
मैं उस साहिर के
होठों से लगी
होठों से लगी
उसके उंगलियों के बीच
अधजली सी सिगरेट हूँ....
वो जो धुआं है न
जिसका फैलाव दिख रहा है?
जिसका फैलाव दिख रहा है?
वो इस बावरे दिल
और उस दायरे को भर रहा है
धीरे-धीरे,रफ़्ता-रफ़्ता
मुझ में ही घुलता जा रहा है
मुझ में ही घुलता जा रहा है
उस ऐश ट्रे में जो चंद राख
और एक टुकड़ा सिगरेट का
और एक टुकड़ा सिगरेट का
छूटा पड़ा है न ?
उसी लत के सहारे
ये सफ़र ज़िन्दगी का
मुकम्मल कर रही हूँ मैं
मुकम्मल कर रही हूँ मैं
बस तुम भी इसी तरह
मुझमें सुलगते रहना
मुझमें सुलगते रहना
सिगरेट की टूटन मैं पीती रहूँ
और तुझे ही जीती रहूँ।
और तुझे ही जीती रहूँ।
रेवा
#अमृता के बाद की नज़्म