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Wednesday, May 30, 2018

मैं इश्क हूँ मैं अमृता हूँ


मैं इश्क हूँ
मैं अमृता हूँ

मैं उस साहिर के
होठों से लगी
उसके उंगलियों के बीच
अधजली सी सिगरेट हूँ....

वो जो धुआं है न
जिसका फैलाव दिख रहा है?
वो इस बावरे दिल
और उस दायरे को भर रहा है

धीरे-धीरे,रफ़्ता-रफ़्ता
मुझ में ही घुलता जा रहा है

उस ऐश ट्रे में जो चंद राख
और एक टुकड़ा सिगरेट का
छूटा पड़ा है न ?

उसी लत के सहारे
ये सफ़र ज़िन्दगी का
मुकम्मल कर रही हूँ मैं

बस तुम भी इसी तरह
मुझमें सुलगते रहना

सिगरेट की टूटन मैं पीती रहूँ
और तुझे ही जीती रहूँ।

रेवा
#अमृता के बाद की  नज़्म

16 comments:

  1. नमस्ते,
    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    गुरुवार 31 मई 2018 को प्रकाशनार्थ 1049 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।

    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

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  2. प्रिय रेवा दी , क्या ख़ूब उकेरा है अमृता को अपनी कलम में। उनकी रसीदी टिकट याद आ गयी।
    बहुत सुंदर नज़्म
    सादर

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  3. बहुत सार्थक सशक्त रचना जिसने भी अमृता जी को पढ़ा है वो ये ही सोचेगा अगर वो स्वयं भी लिखती तो ऐसा ही कुछ लिखती।
    अप्रतिम ।

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    Replies
    1. अह्हा....बहुत बहुत शुक्रिया

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  4. wah! Aapne sach mein uske pyaar ko samajh kar tarasha hai shabdon mein..

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  5. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ३१ मई २०१८ - विश्व तम्बाकू निषेध दिवस - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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