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Thursday, October 11, 2018

अंतर का दीया (२)



ये जो मेरी काया है न 
यही तो मेरी कहानी है
जब इस काया के पन्ने
पलटती हूँ और
पढ़ती हूँ अपने एहसास
अपने ख़याल
और अपने सवाल
सारे
समझ नहीं आती हैं
कई बातें
ये दुख सुख की सौगातें 
तब मेरे अंतर का दीया
करता है रोशन मेरी राहें

कभी करती हूं सवाल इससे
कैसे दिप दिप करते हो
तुम सदा ?
तो जवाब मिलता है
मैं तो कुछ भी नहीं हूँ
वो तुम ही तो हो
जलाती रहती हो जो
अपने विश्वास से इस
दीये की लौ
मेरे अंतर का दीया
करता है रोशन मेरी राहें

#रेवा 
#अंतर का दीया
#अमृता जी की कविता से प्रेरित 

10 comments:

  1. आज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की २२०० वीं पोस्ट ... तो पढ़ना न भूलें ...
    गिरिधर मुरलीधर - 2200 वीं ब्लॉग-बुलेटिन " , में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. अंतरमन की करवटें प्रदर्शित करती रचना।
    अच्छी लगी ।

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  3. बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना

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  4. ये विश्वाश क्या कुछ नहीं करता.
    बेहतरीन रचना
    हद पार इश्क 

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  5. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (13-10-2018) को "व्रत वाली दारू" (चर्चा अंक-3123) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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