मैं वो औरत हूँ
जिसने की है
एक मर्द से दोस्ती
जिसमें पाया है मैंने
अच्छा पक्का दोस्त
जिसे मैं अपने दिल की
हर बात साझा कर
सकती हूँ
जो मुझे समझता है
हर तकलीफ़ में साथ
खड़ा रहता है
मैं जैसी हूँ उसके लिए
एकदम परफेक्ट हूँ
हाँ गलतियों में डांट
भी देता है
कभी पिता सा लाड़ करता है
कभी प्रेमी सी बातें
तो कभी दोस्त बन कर
सलाह देता है
उसे मैं हमेशा
अपना कंधा कहती हूँ
पर वो मेरा पति
नहीं है न दूर दूर तक
कोई रिश्ता है उससे
फिर भी वो सबसे करीब है
हाँ शायद मैं बदचलन
औरत हूँ
या बेबाक या मोर्डरन
जमाने की बिगड़ी हुई
औरत या फिर
मैं जैसा
कहती हूँ इंसान हूँ
और इंसान से की है
दोस्ती और रिश्ता
इंसानियत का है
#रेवा
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया
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ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 31 मार्च 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteसुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteवाह!रेवा जी ,बहुत खूब!
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteऐसे संबंध कृष्ण और द्रौपदी के जमाने से ही चले आ रहे हैं। बहुत सुंदर कविता!!!
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteबेहद खूबसूरत रचना
ReplyDeleteशुक्रिया संजय
Deleteमुझे लगता है , ऐसा रूहानी दोस्ती भरा रिश्ता , जो मानवता पर आधारित है , दुनिया के हर रिश्ते पर भारी है | हाँ एक औरत के संदर्भ में इसे बदचलनी का नाम मिलते देर नहीं लगती |
ReplyDeleteजी ...शुक्रिया
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