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Tuesday, March 31, 2020

स्त्री मन



क्या लिखूं अब तो 
शब्दकोश भी खाली 
हो गया है
नहीं बचे अब कोई 
शब्द जो बयां कर सके 
वो एहसास जो मैं 
शिद्दत से महसूस करती हूँ 
और जो तुम्हें छू कर भी नहीं जाती 

तकलीफ़ मुझे बहुत होती है 
पर जानते हो तुम्हारा कितना 
नुकसान हो रहा है 
तुम ज़िन्दगी जी नहीं रहे हो 
बस बीता रहे हो 
अब तो तुमसे प्यार है 
ये भी नहीं बोल पाती 
हाँ ख़्याल जरूर है 

जानते हो न प्यार और ख़याल 
के बीच एक महीन रेखा है 
मुझे लगता है हमारे बीच अब वही 
एक कड़ी रह गयी है 

और तकलीफ़ इसलिए ज्यादा
होती है कि मैं कभी लिख कर 
कभी बोल कर कह लेती हूँ 
दिल का हाल 
पर तुम्हारे पास तो ये ज़रिया 
भी नहीं 

काश! तुम समझ पाते 
ये ज़िन्दगी एक बार ही मिली है 
खत्म हो जाएगी एक दिन
चाहो तो जी लो हर पल 
चाहो तो सिर्फ गुजार लो 
पल पल....

#रेवा

8 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (01-04-2020) को    "कोरोना से खुद बचो, और बचाओ देश"  (चर्चाअंक - 3658)    पर भी होगी। 
     -- 
    मित्रों!
    आजकल ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत दस वर्षों से अपने चर्चा धर्म को निभा रहा है।
     आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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  2. सुन्दर प्रस्तुति

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  3. आदरणीया/आदरणीय आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-२ हेतु नामित की गयी है। )

    'बुधवार' ०१ अप्रैल २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य"

    https://loktantrasanvad.blogspot.com/2020/04/blog-post.html

    https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।


    आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'

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  4. काश! तुम समझ पाते
    ये ज़िन्दगी एक बार ही मिली है
    खत्म हो जाएगी एक दिन
    चाहो तो जी लो हर पल
    चाहो तो सिर्फ गुजार लो
    पल पल....
    वाह!!!
    एकदम सटीक.... सुन्दर।

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