समाज के कुछ तबकों को
औरतों से इतनी नफ़रत है कि वे
अनेकों घृणित नामों से
उसे नवाज़ते हैं
अनेकों घृणित नामों से
उसे नवाज़ते हैं
कभी रखैल, कभी वैश्या
तो कभी बदचलन
सोचती हूँ मैं
अगर मर्द होते ही नहीं
तो इन नामों का
कोई मतलब ही नहीं रह जाता
तो कभी बदचलन
सोचती हूँ मैं
अगर मर्द होते ही नहीं
तो इन नामों का
कोई मतलब ही नहीं रह जाता
इन नामों से
सिर्फ औरतों को ही
इसलिए जोडा़ जाता है
कि औरतें
प्रतिशोध से परे हैं
लाज का दही
मुँह पर जमाये फिरती हैं
सिर्फ औरतों को ही
इसलिए जोडा़ जाता है
कि औरतें
प्रतिशोध से परे हैं
लाज का दही
मुँह पर जमाये फिरती हैं
इसी तबके के लिये
इन्हीं तबकों में से
इन्हीं मर्दों के लिये भी
भंड़वे, बदजा़त
और ज़नमुरीद जैसे शब्द भी हैं
लेकिन नहीं करतीं इस्तेमाल
इन शब्दों को
ये खुदगर्ज, मनहूस
और डरपोक औरतें
इन्हीं तबकों में से
इन्हीं मर्दों के लिये भी
भंड़वे, बदजा़त
और ज़नमुरीद जैसे शब्द भी हैं
लेकिन नहीं करतीं इस्तेमाल
इन शब्दों को
ये खुदगर्ज, मनहूस
और डरपोक औरतें
वाह
ReplyDeleteबहुत खूब।
शुक्रिया
Deleteसटीक रचना
ReplyDeleteशुक्रिया
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