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Thursday, April 9, 2020

प्रेम

कई बार तुम्हें
सपनों में आवाज़ लगायी
धुंध में ढूंढने की कोशिश की
अपनी खुली बाँहों में
संभालना चाहा 
तनहाइयों में भी 
तुम्हें अपने साथ पाया 

भाइयों और बहनों के
झगड़ों में तुम्हें महसूस किया
माँ की लोरी में सुना
दोस्तों के बीच भी अनुभव किया
तमाम रिश्तों के 
मूल में तुम ही तो थे, 

छोटी बड़ी
कविताओं में तुम 
यहाँ तक की
पूरी की पूरी किताब में भी तुम

गीतों में सुना तुम्हें,
मीरा के पदों में सुना
मंदिर की भजनों में सुना
मस्जिद की आज़ानों में भी तुम थे,

प्रेम तुम किस किस रूप में
कहाँ कहाँ  रहते हो ?
बताओ तो
लेकिन कभी दिखते क्यों नहीं ?
कभी तो सामने आओ न 
बड़ी शिद्दत से
छूना चाहती हूँ तुम्हें 

पर....कैसे ??
ये समझ नहीं पाती
क्योंकि दिमाग तो यही
कहता है
तुम तो बस एहसास हो 
महसूस तो कर सकती हूं
पर छू नहीं सकती
पर दिल मानना नहीं चाहता !!!

#रेवा 

12 comments:

  1. बहुत सुन्दर

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  2. वाह👌👌👌👌🙏🙏

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    दिल को काबू में रखिए।

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  4. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 10 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(११-०४-२०२०) को 'दायित्व' (चर्चा अंक-३६६८) पर भी होगी
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
    महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    **
    अनीता सैनी

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