काफ़ी सालोँ बाद कोल्कता में दुबारा रहने का मौका मिला ,पति का यहाँ ट्रान्सफर हुआ था ,खुश भी थी और दुखी भी, यहाँ का एक ऐसा रूप देखा जिससे मैं काफी आहत हूँ ।
यहाँ हर सुख सुविधा है , अच्छे लोग हैं,अच्छा खान पान ,और लड़कियां भी यहाँ सुरक्षित हैं ,पर जब यहाँ मैं अपनी बेटी का स्कूल मे एडमिशन करने निकली तब ये रूप देखा , कैसे पैसो से बच्चो के भविष्य के साथ खिलवाड़ होता है।
१ महीने घुमी मैं इस चक्कर मे ,लगने लगा शायद मेरी बेटी ही कुछ पढाई में कमज़ोर है ,पर जब लोगों को अपनी व्यथा बताई ,तब समझ आया बच्चा पढ़ने में फिस्सडी हो या होशियार उससे कोई फर्क नहीं पड़ता ,यहाँ तो बस पैसा फेको तमाशा देखो। लाखों में बच्चा जीरो से हीरो और मनचाहे स्कूल में तालीम हासिल कर सकता है। वार्ना घर पर बैठा कर रखो ,ऐसे स्कूल मे सीट खाली नहीं है ,एंट्रेंस टेस्ट का दावा करते हैं ,पर पैसे देते ही सीट भी खाली और टेस्ट भी क्लियर। स्कूल के चपरासी से लेकर जाने सिस्टम मे कितने लोग जुड़े हैं ,हम माँ बाप से बात करते हैं कुत्तों की तरह जैसे हमने पता नहीं कितना बड़ा गुनाह कर दिया हो ,पर बच्चों के लिए वो भी सेह लो ,पर ये उनके के भविष्य से खिलवाड़ है ................ये कहाँ तक सही है ?
शायद इसमे गलती भी हमारी ही है ,हमने पैसे देने शुरू किये तो लोगों ने अपना चैनल बना लिया , पर गलती जहाँ हो, जैसी हो भुगत रहे हैं बच्चे और उनके माता पिता .........पैसे वाले तो पैसे देकर अपना काम निकाल लेते हैं ,भुगतते हैं मिडिल क्लास लोग और उनके बच्चे।
पर इन सबसे ऊपर ये बच्चों की और पूरी सिस्टम की बात है ..................बहुत दुःख और तकलीफ हुई मुझे ये सब देखकर ,ये भी corruption का एक गन्दा रूप है।
रेवा
यहाँ हर सुख सुविधा है , अच्छे लोग हैं,अच्छा खान पान ,और लड़कियां भी यहाँ सुरक्षित हैं ,पर जब यहाँ मैं अपनी बेटी का स्कूल मे एडमिशन करने निकली तब ये रूप देखा , कैसे पैसो से बच्चो के भविष्य के साथ खिलवाड़ होता है।
१ महीने घुमी मैं इस चक्कर मे ,लगने लगा शायद मेरी बेटी ही कुछ पढाई में कमज़ोर है ,पर जब लोगों को अपनी व्यथा बताई ,तब समझ आया बच्चा पढ़ने में फिस्सडी हो या होशियार उससे कोई फर्क नहीं पड़ता ,यहाँ तो बस पैसा फेको तमाशा देखो। लाखों में बच्चा जीरो से हीरो और मनचाहे स्कूल में तालीम हासिल कर सकता है। वार्ना घर पर बैठा कर रखो ,ऐसे स्कूल मे सीट खाली नहीं है ,एंट्रेंस टेस्ट का दावा करते हैं ,पर पैसे देते ही सीट भी खाली और टेस्ट भी क्लियर। स्कूल के चपरासी से लेकर जाने सिस्टम मे कितने लोग जुड़े हैं ,हम माँ बाप से बात करते हैं कुत्तों की तरह जैसे हमने पता नहीं कितना बड़ा गुनाह कर दिया हो ,पर बच्चों के लिए वो भी सेह लो ,पर ये उनके के भविष्य से खिलवाड़ है ................ये कहाँ तक सही है ?
शायद इसमे गलती भी हमारी ही है ,हमने पैसे देने शुरू किये तो लोगों ने अपना चैनल बना लिया , पर गलती जहाँ हो, जैसी हो भुगत रहे हैं बच्चे और उनके माता पिता .........पैसे वाले तो पैसे देकर अपना काम निकाल लेते हैं ,भुगतते हैं मिडिल क्लास लोग और उनके बच्चे।
पर इन सबसे ऊपर ये बच्चों की और पूरी सिस्टम की बात है ..................बहुत दुःख और तकलीफ हुई मुझे ये सब देखकर ,ये भी corruption का एक गन्दा रूप है।
रेवा
यह तो सब जगह है रेवा सिर्फ एक कोल्कता क्या दिल और भारत के दुसरे शहर इससे अछूते नहीं है | सब एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं |
ReplyDeleteshayad aap sahi bol rahe hain...par main jitni jagah shift hui hun sabse jyada kharab is mamle mey kolkata hi dikha mujhe
ReplyDeleteहर जगह ऐसा ही है.
ReplyDeleteमन के जज़्बातों को शब्दों से आपने सजीव वर्णन किय है अदरणीय ''बहिन रेवा'' जी।
ReplyDeleteहाँ कोइ शहर अब भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं है, ओर जहॉँ तक कोलकत्ता क प्रश्न है तो उसे तो विकसित हि नहीं क़रने दिया जा रहा है, ताकि मँहगाई न बढ़ जाये। ऐसे में भी अगर वहाँ भ्रष्टाचार है तो बहुत हि ख़राब स्थिती-परिस्थिति होगी।
एक नज़र :- हालात-ए-बयाँ : ''भोलू का भोलापन''
दुखद स्थिति...सभी जगह यही हाल हैं...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (26-04-2014) को ""मन की बात" (चर्चा मंच-1594) (चर्चा मंच-1587) पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Mayank ji abhar
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (26-04-2014) को ""मन की बात" (चर्चा मंच-1594) (चर्चा मंच-1587) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हर शहर में यही स्थिति है। आशा है आपकी बेटी का कहीं ना कहीं दाखिला हो जायेगा ।
ReplyDeleteस्कूलों की कार्यप्रणाली बिलकुल बिज़नेस हाउसेस जैसी है आजकल ...... बहुत दुखद है
ReplyDeleteshukriya
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteस्कूल की कार्य प्रणाली वाकई आज बिजनेस बन गया है और ये आपके यहाँ ही नहीं हर शहर में यही हाल है
ReplyDeletesahi kaha ye har kisi ki vytha hai ..
ReplyDeleteकल रेलवे स्टेशन पर सीज़नल टिकट (एम एस टी ) बनवाने गय था...काउन्टर पर बाबू ने कहा कि फॉर्म की फोटोकॉपी बाहर मिलेगी...एक पेज का फ़ॉर्म पाँच रुपये का...जय हो...अच्छे दिन कैसे आऐंगे...जब हर सरकारी दफ्तर सेवा के लिये सुविधा शुल्क पर आमादा है...निजी स्कूलों कि तो बात हीं क्या है...
ReplyDeleteरेवाजी,
ReplyDeleteआप की लेख पढा शायद अब समय बदल गया है। आप से मेरा सुझाव है कृपया St thomas (khider pur )में कोशिश कर के देखिये। वैसे वह है किस क्लास में?
मैंने ने कुछ साल पहले अपने दो बच्चों का प्रवेश वहाँ कराया था।कोई मुश्किल नहीं हुई थी। उस समय मेरी बेटी ९वीं मेंऔर बेटा २री कक्षा में था।
जरा मेरे नये ब्लोग ,"kahaniya unwarat.com" पर जरूर आईयेगा। मैने बच्चों के लिये"बच्चों का कोना बनाया है।"ब हुत प्यारी-प्यारी शिक्षाप्रद कहानिया लिखी है।जरा आ कर देखिये।
चिन्ता न कीजिये आप का काम बनेगा बस लगे रहिये क्यों कि "कोशिशे कामयाब होती हैं।"
विन्नी,