नहीं बन पायी मैं
अपनी कहानी वाली मिनी
बहुत कोशिश की ,
अपने आप को
हर कसौटी मे
खरा साबित करने की ,
पर जाने हर बार
कुछ रह ही जाता है ,
पता नहीं मेरे प्रयास
मे कमी है या मुझमे ,
या मेरे नज़रिये मे
पर जो भी है
बहुत अकेली पड़ गयी हूँ ,
क्यूंकि खुद से नाराज़ हूँ आजकल।
रेवा
अपनी कहानी वाली मिनी
बहुत कोशिश की ,
अपने आप को
हर कसौटी मे
खरा साबित करने की ,
पर जाने हर बार
कुछ रह ही जाता है ,
पता नहीं मेरे प्रयास
मे कमी है या मुझमे ,
या मेरे नज़रिये मे
पर जो भी है
बहुत अकेली पड़ गयी हूँ ,
क्यूंकि खुद से नाराज़ हूँ आजकल।
रेवा
स्वयं को खोज लेने को प्रेरित करती कविता की पंक्तियाँ।
ReplyDeleteशब्द जैसे ढ़ल गये हों खुद बखुद, इस तरह कविता रची है आपने।
shukriya sanjay bhai
Deletedil ko chhu gayi ye rachna Rewa...sachh kaha tumne, apne aapko prove karne ke liye jo bhi koshish kare ..hame hamesha kami si mahsoos hoti hai...ye insaan ki fitrat hai. bahut achhi rachna.
ReplyDeletethank u di
Deleteबहुत सुंदर !
ReplyDeletekhud ko jab paa lenge tab to duniya hi khatm ho jayegi ...jab tak khud ki talash rahegi jeevn jari rahega ...bahut sundar rachna
ReplyDeleteखुद से नाराजगी जल्दी ही दूर होनी चाहिए ... नहीं तो काव्य धरा कहाँ से बहेगी ...
ReplyDeleteखुद से ही नाराजगी ....भावुक लेखनी
ReplyDeleteखुद से नाराज़ कब तक रहा जा सकता है...बहुत भावमयी रचना...
ReplyDeleteबढ़िया यार
ReplyDeleteshukriya aap sabka
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट अभिव्यक्ति की चर्चा कल रविवार (27-04-2014) को ''मन से उभरे जज़्बात (चर्चा मंच-1595)'' पर भी होगी
ReplyDelete--
आप ज़रूर इस ब्लॉग पे नज़र डालें
सादर
shukriya abhi bhai
Deleteसुन्दर आत्म निरिक्षण!
ReplyDeletenew post रात्रि (सांझ से सुबह )
बहुत बढ़िया :)
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