ज़िन्दगी के सफर मे
मिल जातें है कई लोग ,
कुछ दिल से जुड़ जाते है
कई बस यूँही कुछ पल
साथ रहते हैं ,
पर ज़िन्दगी के हर मोड़ पर
चाहे कितनी भी
मुसीबतें आये ,
जीवन साथी सदा
साथ निभाते है न ?
लेकिन अगर वोही
अजनबियों जैसा व्यवहार करे तो ?
शायद तब भी
सफर ख़त्म तो नहीं होता
पर कठिन हो जाता है ,
"जैसे एक ही कमरे में
सालों से रह रहे दो लोग
अजनबियों से भी ज्यादा अजनबी "
रेवा
शायद यही नियति है...बहुत सुन्दर और भावपूर्ण...
ReplyDeleteशायद यह भी जिंदगी का द्रश्य है !
ReplyDeletenew post रात्रि (सांझ से सुबह )
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (28-04-2014) को "मुस्कुराती मदिर मन में मेंहदी" (चर्चा मंच-1596) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
shukriya Mayank ji
Deleteआपकी लिखी रचना मंगलवार 29 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
ReplyDeletehttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
shukriya Yashoda behen
ReplyDeletemann ko chu lene wali rachna....mann ki vyatha mann hi janta hai...
ReplyDeleteअजनबियों को शब्द देती सुंदर रचना
ReplyDeleteहाँ सच में एक अजीब सा नाता जुड़ जाता है
ReplyDeleteसत्य का ब्यान करती कविता |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .....
ReplyDeleteसफर ख़त्म नहीं होता मुश्किल हो जाता है । बिलकुल सहमत हूँ ।
ReplyDeleteयह सफर अनवरत ऐसे ही चलता है , यह भी जीवन की एक सच्चाई है
ReplyDeleteबिल्कुल सच्ची बात ....
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