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Monday, September 29, 2014

बेकाबू आँसू



धो लिये आज आंसुओं से
अपने सारे गम........
भर ली अपनी झोली
फिर इन नमकीन
जल की धाराओं से
चाहती नहीं थी
इन्हें न्योता देना
पर क्या करूँ
इन्सान हूँ
देवताओं जैसी फितरत
कहाँ से लाऊँ..........
जब सहनशक्ति
अपनी हदें पार
कर लेती है
तो ये आँसू बेकाबू
हो जातें हैं
जिनकी किस्मत मे
होता है बह कर
बस सूख जाना ...........


रेवा


15 comments:

  1. इतने बेकाबू की ख़ुशी हो या गम दोनों में चले आते हैं
    वो भी आंसू है
    शायद तेजबों वाले
    जो गालों पर
    अमिट अक्स छोड़ जाते हैं
    मानो
    कोई नदी टूट कर बहती है
    बस्ती को चिरती हुई
    सूखने के बाद भी
    निशां पड़े रहते हैं
    उस बेखोफ हस्ती के.

    भावपूर्ण कविता :)

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  2. ये आँसू होते ही ऐसे हैं ! आँसुओं की नमी से भीगी-भीगी सी खूबसूरत मंत्री !

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  3. सुंदर रचना , धन्यवाद !
    आपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 1 . 10 . 2014 दिन बुद्धवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !
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  4. भावपूर्ण मन को छूती कविता --
    सादर -

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  5. areeeeee...itna emotional hone ki jarurat nahi hai....aansuon se Dil Halka...aur Aankhen Saaf ho jaati hai.... :) :) :)
    Bolo.....Jai Mata Di....

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  6. भावमय करते शब्‍द एवं प्रस्‍तुति

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  7. Bahut bhaawpurn rachna .... Badhaayi ..!!

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  8. Bahut Khub Likha hai Appne....
    swayheart.blogspot.in

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