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Tuesday, January 31, 2017

प्यार भरी किताब



लिखा जब भी
मैंने खुद को ........
मेहसूस किया
इस कागज़ ने
तब मुझको ,
लिखे जब
दर्द भरे अल्फ़ाज़
इसके दिल पर ,
तकलीफ़ इसे भी हुई
शब्दों से मिल कर ,
जब  हुई इसकी
मुलाकात
मेरे आँसुओं के साथ

स्याही
ने भी बिखर कर
किया एहसास ,

पर अब बस
बहुत कर लिया
हमने दर्द का सफ़र 

आज से ये वादा है 
एक दूजे के साथ की 
अब हम मिलकर लिखेंगे 
सिर्फ प्यार भरी किताब !!!!



रेवा  

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8 comments:

  1. बेहतरीन रचना

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  2. प्रेम को हम जब तक नहीं लिख सकते, जब तक हम प्रेम को मेहसूस नहीं कर सकते। विरह, वेदना, आह, आँसू प्रेम के ही रूप हैं। जहाँ प्रेम होता हैं वहाँ विरह, वेदना, आह, आँसू भी होते हैं। जीवम का सबसे ज़रूरी अंग हैं प्रेम। प्रेम हीन होने पर तो संसार रंग हीन हो जाएगाँ।
    प्रेम का अहसास लिए एक सुन्दर कविता........ बधाई।
    http://savanxxx.blogspot.in

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  3. aaha kya baat kahi apne....bahut bahut shukriya

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  4. प्रेम में जीवन का हर पहलू छिपा नजर आता है .....और जब प्रेम द्विपक्षीय हो जाता है तो किताब क्या.... ग्रन्थ क्या ....वाह सब कुछ हासिल किया जा सकता है जो प्रेम की परिभाषा में आ जाते है...

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