काश वो ढलती शाम फिर आ जाये
फिर मैं उस भीढ़ भाड़ मे खड़ी तेरा इंतज़ार करु
फिर तू कहीं नज़र न आये
फिर से मै बेक़रार हो जाऊ
और इंतज़ार मैं तेरे अपनी रुमाल के कोने घुमाऊ ,
फिर अचानक भीड़ में तेरा नज़र आना
हमारी नज़रों का मिलना
नज़रों ही नज़रों में एक दुसरे को पहचानना
और शर्म से मेरी नज़रों का झुक जाना ,
फिर वो कॉफ़ी और चने के साथ अनगिनत बातें करना
बातो के साथ नज़रे चुरा कर एक दुसरे को देखना ,
झील के किनारे होले होले ठंडी हवा के साथ बहना
चाँद का झांक कर हमे देखना
वक़्त का ठहर सा जाना ,
काश वो ढलती शाम फिर आ जाये l
रेवा
फिर मैं उस भीढ़ भाड़ मे खड़ी तेरा इंतज़ार करु
फिर तू कहीं नज़र न आये
फिर से मै बेक़रार हो जाऊ
और इंतज़ार मैं तेरे अपनी रुमाल के कोने घुमाऊ ,
फिर अचानक भीड़ में तेरा नज़र आना
हमारी नज़रों का मिलना
नज़रों ही नज़रों में एक दुसरे को पहचानना
और शर्म से मेरी नज़रों का झुक जाना ,
फिर वो कॉफ़ी और चने के साथ अनगिनत बातें करना
बातो के साथ नज़रे चुरा कर एक दुसरे को देखना ,
झील के किनारे होले होले ठंडी हवा के साथ बहना
चाँद का झांक कर हमे देखना
वक़्त का ठहर सा जाना ,
काश वो ढलती शाम फिर आ जाये l
रेवा
sunder ehsaas.
ReplyDeleteKaash! Bahut sundar rachana..har kisee ke dil ke kone me chhupi baat kah rahi hai..!
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिेए साधुवाद
ReplyDeleteबहुत से गहरे एहसास लिए है आपकी रचना ...
ReplyDeleteaap sab ka bahut bahut dhanyavad........apki sarahna say mujhe aur likhne ki prerna milti hai
ReplyDelete