उफ्फ्फ्फ़ वो कॉलेज के दिन भी क्या दिन थे
वो बातें वो मुलाकातें ........
वो कैंटीन की मस्ती ...वो छीना झपटी
बगल की बेंच खाली रखना और तेरा इंतज़ार करना
तेरा हमेशा की तरह पेन भूल जाने के
बहाने मुझे देखना .......
ठण्ड में घंटो धुप में बैठ कर फाइल पूरा करना
तेरा पैसे न लाना और मेरी शाल गिरवी रख
कर किताब लेना ........
घंटो कॉलेज की सीडी पर बैठ कर बातें करना
घर से जूठ बोल बोल कर कॉलेज में मिलना
बरसात में एक छत्री के निचे रहने के लिए अपनी छत्री छुपाना
अनगिनत ऐसी यादें .............
काश वो दिन फिर आ जाये ..........
उफ्फ्फ वो कॉलेज के दिन
रेवा
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ReplyDeletecollege ke bhi kya din the.......
ReplyDeletewo shaam wo baate woh sapno jaisi raate....
काश वो दिन फिर आ जाये ..........
ReplyDeleteउफ्फ्फ वो कॉलेज के दिन
Kaunse din,kab laut aate hain?
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ReplyDeleteयह आना-जाना, छूटने-बिछड़ने का क्रम तो लगा हीं रहता है । यह बात हम सभी जानते है, पर यह मन कहाँ मानता है । आगे की ज़िन्दगी हम लोगों की राह देख रही है, ना जाने कैसे-कैसे रास्ते मिलेंगे । कहीं पढ़ा था “बहता पानी निर्मला” । यह पानी कितना निर्मल है यह तो नहीं पता, पर यह ज़िन्दगी बहती रहेगी, पानी की तरह हमेशा
ReplyDeletemukanda ji thanx for visiting my blog
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