नदीया सी
इठलाती बलखाती
उछलती कूदती
बहती रहती थी मै ,
मन मे एक आस लिए
जीती थी
सोचा था एक दिन
तेरे प्यार भरे समुद्र मे
समां कर ,विलीन हो जाउंगी
अपना सब कुछ
न्योछावर कर
बह जाउंगी
न्योछावर कर
बह जाउंगी
तेरी धारा के साथ ,
मै बहती गयी तुझमे
पर तुने
अपना रुख मोड़ लिया
अपना रुख मोड़ लिया
मुझे तनहा छोड़ दिया
पर मैं आज भी बहती हूँ
करती हुं इंतज़ार
मन में आस लिए की
मन में आस लिए की
कभी न कभी तू
समझेगा मेरा प्यार |
रेवा
सुन्दर शब्द रचना ।
ReplyDelete"प्यार" किसी भी परस्थिति मै याचना नहीं हे
ReplyDeleteप्यार चाह हे भीतरी भूख हे,पर कामना नहीं हे
तभी तो कहा गया हे .....
प्यार अर्चना हे, प्यार समर्पण हे, प्यार भक्ति हे
जब खुदko भीतर का बना दे तो प्यार भगवान हे
..... दादू
Apki upar likhi kavita मै "aas" chupi hoi हे ,
bahut gehri 'aakanksha' पर aadharit हे kavita,
Dadu hone key naate kahunga, bhavon ko bikhrne mat diya karo ,
hamare 'bhav' nadiya paar karwane liye "NAAV" samaan hein !
very nicely written... congrats....
ReplyDeletekeep writing....
visit my new poem too...
कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।
ReplyDeleteBeautiful as always.
ReplyDeleteIt is pleasure reading your poems.
sanjay ji bahut bahut shukriya.....hausla badhane kay liye...
ReplyDeleteShekhar ji thanx....will surely read
ReplyDeletetu nadi hai ullu tu khud mahasagar hai
ReplyDeletemamta aur sneh ka mahasagar
apne se pyar karna sikho jee
ok take care of your health & Be Happy :)
tera chhota bhai
vj sufi