जब भी जिसे भी
अपना बनाया,
उसे ही
तकलीफ पहुँचाया,
जाने या अनजाने
इससे कोई
फरक नहीं पड़ता ,
पर बात तो
वही है ,
शायद मेरे अपनेपन
या प्यार मे कोई
कमी है ,
अपने नसीब से
तो मै लड़ भी लू
पर अपने
अपनों से कैसे लडू ,
कैसे उनका विश्वाश
वापस लाऊ ,
या छोड़ दू
कोशिशे ,
पत्थर बना लू इस
दिल को ,
न तो प्यार करू
न उम्मीद ,
न दुःख दू
किसी को
न तोडू आस ,
बस बन जाऊं
एक मूर्त बिन एहसास
रेवा
अपना बनाया,
उसे ही
तकलीफ पहुँचाया,
जाने या अनजाने
इससे कोई
फरक नहीं पड़ता ,
पर बात तो
वही है ,
शायद मेरे अपनेपन
या प्यार मे कोई
कमी है ,
अपने नसीब से
तो मै लड़ भी लू
पर अपने
अपनों से कैसे लडू ,
कैसे उनका विश्वाश
वापस लाऊ ,
या छोड़ दू
कोशिशे ,
पत्थर बना लू इस
दिल को ,
न तो प्यार करू
न उम्मीद ,
न दुःख दू
किसी को
न तोडू आस ,
बस बन जाऊं
एक मूर्त बिन एहसास
रेवा
वाह! बेहतरीन अभिव्यक्ति!
ReplyDeletebeautiful Rewa....love u.
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति रेवा जी...!!
ReplyDeleteअपने बहुत कुछ लिखा हे अपनी पहले की कविताओं मै ,
ReplyDeleteपर ना जाने क्यों .......
यह कविता मुझे आपकी सबसे अच्छी कविता लगी हे जी !
मिनी जब जब आप खुद को भीतर तक देखते हुए लिखोगी
तबतब आपकी कविताओं मै निखर ही नहीं प्रकाश भी पनपेगा
दादू !
aap sabka bahut bahut shukriya
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