हर साल
मानते है हम "महिला दिवस "
पर क्या कुछ बदल
पाते हैं हम ..........
समाज मे वही कुरीतियाँ ,
वही अत्याचार
दोहराए जाते है हर बार
पर क्या कुछ बदल
पाते हैं हम ..........छोटी बच्चियों के
साथ बलात्कार ,
दहेज़ के लिए प्रताड़ना
रोज सहते हैं हम
पर क्या कुछ बदल
पाते हैं हम ..........
लड़के की चाह मे
अजन्मी बच्चियों
की हत्या ,
रोज रोज मरते हैं हम
पर क्या कुछ बदल
पाते हैं हम ..........
घरेलु हिंसा के शिकार ,
परिवार के नाम पर
अपनी इच्छाओं
की मौत बार बार ,
देखते हैं हम
पर क्या कुछ बदल
पाते हैं हम ..........
रेवा
रेवा जी
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने हम महिला दिवस तो हर साल मनाते है लेकिन करते कुछ नही।
सार्थक कविता
शुभकामनाये
behtareen....
ReplyDeletewaise to mahila diwas ke din news channels par dikhane waale tamashon aur jagah jagah diye jaane waale bhashno ke alawaa kuch bi nahi hota....
badlaw ki zaroorat hai...:)
एक सार्थक कविता है| धन्यवाद|
ReplyDeleteआदरणीय रेवा जी
ReplyDeleteनमस्कार !
बिल्कुल सही कहा आपने
aap sabka bahut bahut shukriya
ReplyDeleterewa yah samaaj kyun nahi badlta yah socha kabhi
ReplyDeletekyunki koi shurwaat karta nahi jo karta hai use yah maar dete hai
aur bahut badnaseebi hai hum logo ki ki hum ise sahte aa rahe hai par ek sach yah bhi hai kuch badalw aa rahe hai aur aayenge kyunki ab naari khud par viswash paida karne lagi hai samaaj mai vah sab hasil karne lagi hai jo uska haq banta tha ..aap ki rachna bahut badiya hai salaam aapki kalam ko mere dost
bahut sahi kaha apne....apka bahut bahut shukriya
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