एक समय था
जब मेरे एहसास
बह कर
पहुँच जाते थे
तुम तक ,
बिन बताये ही
हर लम्हा
महसूस कर
लेते थे
तुम ,
तुम्हे याद कर
बहते हुए
मेरे आंसू
बेकरार कर जाते थे
तुझको ,
पर अब तो
ये आलम है
तुम वो
तुम ही न रहे ,
अलग ही दुनिया
बसा ली है अपनी ,
समय के हाथों
बांध लिया है
खुदको ,
पर मैं तो
वहीँ खड़ी हूँ
जहाँ पहले थी ,
इस आस में की
कभी तो
भोर की किरणें
मुझसे हो कर
जाएँगी तुझ तक ,
और हमारे ज़िन्दगी
की सुबह
फिर मुस्कुरायेगी....
रेवा
बहुत खूब...
ReplyDeleteखुबसूरत एहसास पिरोये हैं कविता में...
deepakji bahut bahut shukriya
ReplyDeleteकभी तो
ReplyDeleteभोर की किरणे
मुझसे हो कर
जाएँगी तुझ तक ,
और हमारे ज़िन्दगी
की सुबह
फिर मुस्कुरायेंगी......................
Eeshwar kare aisahee ho!
Rewa,nihayat sundar rachana hai ye!
kshamadi....bahut bahut shukriya....apka intezar tha
ReplyDeleteभोर की किरणे
ReplyDeleteमुझसे हो कर
जाएँगी तुझ तक ,
और हमारे ज़िन्दगी
की सुबह
फिर मुस्कुरायेंगी......................
बेहद खूबसूरत भाव रेवा जी ...सुन्दर ..!!
रेवा जी
ReplyDeleteनमस्कार !
भोर की किरणे
मुझसे हो कर
जाएँगी तुझ तक ,
और हमारे ज़िन्दगी
की सुबह
फिर मुस्कुरायेंगी
..खूबसूरत भाव
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
Sanuji,Sanjayji....bahut bahut shukriya..
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