Followers

Tuesday, March 29, 2011

ज़िन्दगी की सुबह

एक समय था
जब मेरे एहसास
बह कर
पहुँच जाते थे
तुम तक ,
बिन बताये ही
हर लम्हा
महसूस कर
लेते थे
तुम ,
तुम्हे याद कर
बहते हुए
मेरे आंसू
बेकरार कर जाते थे
तुझको ,
पर अब तो
ये आलम है
तुम वो
तुम ही न रहे ,
अलग ही दुनिया
बसा ली है अपनी ,
समय के हाथों
बांध लिया है 
खुदको ,
पर मैं तो 
वहीँ खड़ी हूँ
जहाँ पहले थी ,
इस आस में की
कभी तो
भोर की किरणें
मुझसे हो कर
जाएँगी तुझ तक ,
और हमारे ज़िन्दगी
की सुबह
फिर मुस्कुरायेगी....


रेवा  

7 comments:

  1. बहुत खूब...

    खुबसूरत एहसास पिरोये हैं कविता में...

    ReplyDelete
  2. कभी तो
    भोर की किरणे
    मुझसे हो कर
    जाएँगी तुझ तक ,
    और हमारे ज़िन्दगी
    की सुबह
    फिर मुस्कुरायेंगी......................
    Eeshwar kare aisahee ho!
    Rewa,nihayat sundar rachana hai ye!

    ReplyDelete
  3. kshamadi....bahut bahut shukriya....apka intezar tha

    ReplyDelete
  4. भोर की किरणे
    मुझसे हो कर
    जाएँगी तुझ तक ,
    और हमारे ज़िन्दगी
    की सुबह
    फिर मुस्कुरायेंगी......................

    बेहद खूबसूरत भाव रेवा जी ...सुन्दर ..!!

    ReplyDelete
  5. रेवा जी
    नमस्कार !
    भोर की किरणे
    मुझसे हो कर
    जाएँगी तुझ तक ,
    और हमारे ज़िन्दगी
    की सुबह
    फिर मुस्कुरायेंगी
    ..खूबसूरत भाव
    ..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती

    ReplyDelete
  6. Sanuji,Sanjayji....bahut bahut shukriya..

    ReplyDelete