क्या कुछ मान
लिया था
मैंने तुझे ,
पर अफ़सोस
की तू दोस्त
भी न
बना पाया मुझे ,
अपनी परेशानी
अपने गम
न बाँट
पाया मुझसे ,
पहली मंजिल
पहली मंजिल
पर ही न ले जाने लायक
समझा तुने मुझे ,
ज़िन्दगी की
तमाम मंजिलें
कैसे ते
कर पाओगे
साथ मेरे ,
तनहा थी और
तनहा कर दिया
तुने मुझे ,
पर खुश हूँ
बहुत मैं ,
क्यूंकि
ऐसी तन्हाई
भी हर किसी
के नसीब मे
नहीं होती .................
रेवा
बहुत खूबसूरती के साथ शब्दों को पिरोया है इन पंक्तिया में आपने
ReplyDeleteसुन्दर कविता
ReplyDeleteतनहा थी और
ReplyDeleteतनहा कर दिया
तुने मुझे ,
पर खुश हूँ
बहुत मैं ,
क्यूंकि
ऐसी तन्हाई
भी हर किसी
के नसीब मे
नहीं होती .................
Waha kya baat ha... ekdam sateek kaha apne.. kabhi kabhi tanhai me bhi alag hi maja hota hai.....
shuriya aap sabka
ReplyDeleteकल 13/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
yashwant ji shukriya
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteभावमयी प्रस्तुति
ReplyDeleteतमाम मंजिलें
ReplyDeleteकैसे तेय
कर पाओगे
साथ मेरे ,
तनहा थी और
तनहा कर दिया
तुने मुझे ,
पर खुश हूँ
बहुत मैं ,
क्यूंकि
ऐसी तन्हाई
भी हर किसी
के नसीब मे
नहीं होती .................
तन्हाई पर लिखी बहुत सुंदर और अनोखी रचना बहुत बहुत बधाई आपको /
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बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteसुन्दर भावमयी कविता...
ReplyDeleteaap sabka bahut bahut shukriya
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