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Saturday, May 14, 2011

तन्हाई

क्या कुछ मान
लिया था
मैंने तुझे ,
पर अफ़सोस
की तू दोस्त
भी न
बना पाया मुझे ,
अपनी परेशानी
अपने गम
न बाँट
पाया मुझसे ,
पहली मंजिल
पर ही न ले जाने लायक
समझा तुने मुझे ,
ज़िन्दगी की
तमाम मंजिलें
कैसे ते 
कर पाओगे 
साथ मेरे ,
तनहा थी और 
तनहा कर दिया 
तुने मुझे ,
पर खुश हूँ
बहुत मैं ,
क्यूंकि
ऐसी तन्हाई
भी हर किसी
के नसीब मे
नहीं होती .................


रेवा




12 comments:

  1. बहुत खूबसूरती के साथ शब्दों को पिरोया है इन पंक्तिया में आपने

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  2. सुन्दर कविता

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  3. तनहा थी और
    तनहा कर दिया
    तुने मुझे ,
    पर खुश हूँ
    बहुत मैं ,
    क्यूंकि
    ऐसी तन्हाई
    भी हर किसी
    के नसीब मे
    नहीं होती .................
    Waha kya baat ha... ekdam sateek kaha apne.. kabhi kabhi tanhai me bhi alag hi maja hota hai.....

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  4. कल 13/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  5. बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  6. तमाम मंजिलें
    कैसे तेय
    कर पाओगे
    साथ मेरे ,
    तनहा थी और
    तनहा कर दिया
    तुने मुझे ,
    पर खुश हूँ
    बहुत मैं ,
    क्यूंकि
    ऐसी तन्हाई
    भी हर किसी
    के नसीब मे
    नहीं होती .................
    तन्हाई पर लिखी बहुत सुंदर और अनोखी रचना बहुत बहुत बधाई आपको /


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  7. बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति ...

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  8. सुन्दर भावमयी कविता...

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