आज मन बहुत घबरा रहा है
दोस्त पर विशवाश डगमगा रहा है ,
जाने क्यों ,
विशवाश टूट न जाये
विशवाश टूट न जाये
ये डर सता रहा है ,
विश्वाश की डोर थामे
सालों दोस्ती निभाई हमने ,
फिर आज क्यों ये डोर
कमजोर पड़ रही है ,
एक एक कर के सारे रेशे
एक दुसरे का साथ छोड रहे हैं ,
मै तुझे कटघरे मे खड़ा कर रही हूँ
मै तुझे कटघरे मे खड़ा कर रही हूँ
और खुद ही सारे तर्क दे कर
तुझे कटघरे से मुक्त भी कर रही हूँ !
ये कैसी इम्तेहान की घडी है ?
मेरे सामने मेरी दोस्त खडी है ,
ऐसा दिन कभी किसी दोस्त की ज़िन्दगी
में न आये ,
ये दुआ करती हूँ घडी घडी .........
रेवा
antardawand ka marmik chitarn
ReplyDeletesundar kavita
बहुत ही बढ़िया और मार्मिक रचना ।
ReplyDeleteसादर
गहरे भावो की अभिवयक्ति......
ReplyDeleteरेवा जी....बहुत बढ़िया रचना आपकी..मन को भा गई !!
ReplyDeleteविश्वास को चादर का रूपक देकर , अद्भुत भावपूर्ण कविता बुनी है आपने , बधाई !
ReplyDeleteदोस्ती की पहचान जरूरी है ...
ReplyDeleteशुभकामनायें !
आपके ब्लॉग की फीड ठीक काम नहीं कर रही है, जिस कारण इस ब्लॉग की पोस्ट हमारीवाणी पर प्रकाशित नहीं हो पा रही है. आपने ब्लॉग की फीड का पता नीचे दिया जा रहा है, जिस पर क्लिक करके आप स्वयं चेक कर सकते हैं. कृपया इसे ठीक करें.
ReplyDeletehttp://rewa-mini.blogspot.in/feeds/posts/default
bahut marmik rachna
ReplyDeleteaap sabka bahut bahut shukriya
ReplyDeleteBHAAV ACHCHHE HAI....PARANTU TATHYON SE PAREIN HAI.....AGAR DOST PER KIYA VISHWAS DAGMAGAA RAHA HAI....TO USME WOH NAHI...HUM KHUD DOSHI HAI......VISHWAS KI SARTHAK'TA HI..APNE AAP MEIN VISHWAS HAI.....
ReplyDeletekya baat hai Mr sansac....thanx for ur honest comments
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