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Friday, May 4, 2012

विशवाश

आज मन बहुत घबरा रहा है 
दोस्त पर विशवाश डगमगा रहा है ,
जाने क्यों ,
विशवाश टूट न जाये
ये डर सता रहा है ,
विश्वाश की डोर थामे
सालों दोस्ती निभाई  हमने ,
फिर आज क्यों ये डोर 
कमजोर पड़ रही है ,
एक एक कर के सारे रेशे
एक दुसरे का साथ छोड रहे हैं ,
मै तुझे कटघरे मे खड़ा कर रही हूँ
और खुद ही सारे तर्क दे कर 
तुझे कटघरे से मुक्त भी कर रही हूँ !
ये  कैसी इम्तेहान की घडी है ?
मेरे सामने मेरी दोस्त खडी है ,
ऐसा दिन कभी किसी दोस्त की ज़िन्दगी 
में न आये , 
ये दुआ करती हूँ घडी घडी .........


रेवा    


11 comments:

  1. antardawand ka marmik chitarn
    sundar kavita

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  2. बहुत ही बढ़िया और मार्मिक रचना ।

    सादर

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  3. गहरे भावो की अभिवयक्ति......

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  4. रेवा जी....बहुत बढ़िया रचना आपकी..मन को भा गई !!

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  5. विश्वास को चादर का रूपक देकर , अद्भुत भावपूर्ण कविता बुनी है आपने , बधाई !

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  6. दोस्ती की पहचान जरूरी है ...
    शुभकामनायें !

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  7. आपके ब्लॉग की फीड ठीक काम नहीं कर रही है, जिस कारण इस ब्लॉग की पोस्ट हमारीवाणी पर प्रकाशित नहीं हो पा रही है. आपने ब्लॉग की फीड का पता नीचे दिया जा रहा है, जिस पर क्लिक करके आप स्वयं चेक कर सकते हैं. कृपया इसे ठीक करें.

    http://rewa-mini.blogspot.in/feeds/posts/default

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  8. BHAAV ACHCHHE HAI....PARANTU TATHYON SE PAREIN HAI.....AGAR DOST PER KIYA VISHWAS DAGMAGAA RAHA HAI....TO USME WOH NAHI...HUM KHUD DOSHI HAI......VISHWAS KI SARTHAK'TA HI..APNE AAP MEIN VISHWAS HAI.....

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  9. kya baat hai Mr sansac....thanx for ur honest comments

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